इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विधवा की संपत्ति हड़पने के लिए राजस्व प्राधिकरण के समक्ष झूठे हलफनामे दाखिल करने पर पार्टी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया

Update: 2024-05-23 11:24 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विभिन्न अर्ध-न्यायिक अधिकारियों के समक्ष झूठा हलफनामा दाखिल करके विधवा की जमीन हड़पने की कोशिश करने वाले एक पक्ष पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर अधिकारियों को धोखा देकर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। न्यायालय ने किशोर समरीते बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य पर भरोसा किया, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जो मुकदमेबाज अदालतों में धोखा देने या गुमराह करने के इरादे से आते हैं, उन्हें नकार दिया जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ऐसे मुकदमेबाज गुण-दोष के आधार पर सुनवाई के हकदार नहीं हैं, न ही उन्हें कोई राहत मिल सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि, “(iv) व्यक्तिगत लाभ की चाहत इतनी तीव्र हो गई है कि मुकदमेबाजी में शामिल लोग झूठ का सहारा लेने और अदालती कार्यवाही में तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने और दबाने में संकोच नहीं करते हैं। भौतिकवाद, अवसरवाद और दुर्भावनापूर्ण इरादे ने छोटे-मोटे लाभ के लिए मुकदमेबाजी के पुराने मूल्यों को खत्म कर दिया है।

(v) जो वादी न्याय की धारा को प्रदूषित करने का प्रयास करता है या जो कलंकित हाथों से न्याय के शुद्ध स्रोत को छूता है, वह अंतरिम या अंतिम किसी भी राहत का हकदार नहीं है।

(vi) न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो और प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए न्यायालय को सुरक्षा प्रदान करने पर जोर देना भी उचित होगा और गंभीर दुरुपयोग के मामलों में न्यायालय भारी जुर्माना लगाने के लिए बाध्य होगा।

हाईकोर्ट का फैसला

रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने पहली अपील दायर करने के चरण तक अपंजीकृत वसीयत दाखिल न करने के बारे में दलील नहीं दी थी।

प्रथम अपीलीय अधिकारी के समक्ष ही याचिकाकर्ता ने पहली बार यह दलील दी कि उनके द्वारा तहसीलदार के समक्ष केवल चार दस्तावेज दाखिल किए गए थे तथा उनके समक्ष अपंजीकृत वसीयत कभी दाखिल नहीं की गई।

न्यायालय ने पाया कि जब याचिकाकर्ताओं को लगा कि वे प्रथम अपील में सफल नहीं होंगे, तभी उन्होंने यह रुख अपनाया कि तहसीलदार के समक्ष कोई अपंजीकृत वसीयत पेश नहीं की गई।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने कभी भी संशोधन अधिकारी के उस निष्कर्ष पर विवाद नहीं किया, जिसमें तहसीलदार द्वारा अपंजीकृत वसीयत को दोषों के आधार पर खारिज करने के बारे में कहा गया था।

जस्टिस कुमार ने माना कि राम गोपाल की विधवा से संपत्ति हड़पने के लिए याचिकाकर्ताओं ने झूठे हलफनामे दाखिल किए तथा सभी स्तरों पर न्यायालयों को गुमराह करने का प्रयास किया।

न्यायालय ने माना कि संशोधन के चरण में तहसीलदार के समक्ष अपंजीकृत वसीयत दाखिल न किए जाने का आधार न लेना तथा अपंजीकृत वसीयत को सुधारकर प्रथम अपील में प्रस्तुत करना ही याचिकाकर्ताओं के कपटपूर्ण इरादे को दर्शाता है।

यह मानते हुए कि याचिकाकर्ताओं ने कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

केस टाइटल: संतोष कुमार और 2 अन्य बनाम बोर्ड ऑफ रेवेन्यू यू.पी. प्रयागराज Thru. Its Member Judicial And 10 Others [WRIT - B No. - 523 of 2024]

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