इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत 'मीमियोग्राफिक स्टाइल' में FIR दर्ज करने के खिलाफ राज्य अधिकारियों को चेतावनी दी
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने उत्तर प्रदेश राज्य अधिकारियों को सख्त उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 के तहत मशीनी और रूटीन मामले दर्ज करने के खिलाफ चेतावनी दी।
कोर्ट ने कहा कि विशेष कानून के 'सख्त' प्रावधानों को देखते हुए अधिकारियों को ज़्यादा सावधानी बरतनी चाहिए और "मीमियोग्राफिक स्टाइल" में FIR दर्ज करने से बचना चाहिए।
यह टिप्पणी जस्टिस अब्दुल मोइन और जस्टिस बबीता रानी की डिवीजन बेंच ने प्रतापगढ़ जिले में एक पुलिस अधिकारी द्वारा साबिर अली के खिलाफ दर्ज की गई 'झूठी' FIR रद्द करते हुए की।
अपने आदेश में कोर्ट ने विशेष रूप से FIR दर्ज करने के तरीके और मामले में पुलिस द्वारा अपनाए गए मशीनी रवैये पर ध्यान दिया।
एक सख्त टिप्पणी में हाईकोर्ट ने कहा:
"हालांकि, इस कोर्ट के 20.11.2025 के विस्तृत आदेश पर विचार करते हुए राज्य अधिकारियों को एक चेतावनी जारी की जाती है कि विशेष कानून होने और इसके सख्त प्रावधानों के कारण अधिकारियों को भविष्य में अधिनियम, 2021 के प्रावधानों के तहत मीमियोग्राफिक स्टाइल में FIR दर्ज करते समय अधिक सतर्क रहना चाहिए।"
मामले का संक्षिप्त विवरण
26 अप्रैल, 2025 को याचिकाकर्ता के खिलाफ अधिनियम, 2021 की धारा 5(1), 8(2), और 8(6) के तहत एक FIR दर्ज की गई। सूचना देने वाले, एक सब-इंस्पेक्टर ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता गैरकानूनी धार्मिक धर्मांतरण में शामिल था।
हालांकि, मामला तब अलग मोड़ पर आ गया जब कथित पीड़ित (प्रतिवादी संख्या 5 से 8) हाईकोर्ट के सामने पेश हुए और एक छोटा काउंटर एफिडेविट दायर किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि FIR में लगाए गए आरोप "पूरी तरह से झूठे, मनगढ़ंत, निराधार और बिना किसी आधार के" थे।
उन्होंने कहा कि प्रलोभन, लालच या जबरदस्ती की कोई घटना नहीं हुई और वे "अपनी मर्ज़ी से" अपने धर्म का पालन कर रहे हैं।
इसी बात पर ध्यान देते हुए अपने पिछले विस्तृत आदेश [दिनांक 20 नवंबर, 2025] में कोर्ट ने मामले के तथ्यों पर कड़ी नाराज़गी व्यक्त की थी। कोर्ट ने पहली नज़र में यह भी पाया कि राज्य के अधिकारी द्वारा दर्ज की गई FIR "साफ़ तौर पर झूठी" लग रही थी।
बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों की बाढ़ आ गई। सवाल किया कि नागरिकों को ऐसे मामलों के लिए कोर्ट में आने, पैसे और समय खर्च करने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ता है, जबकि "राज्य खुद ही इन मामलों को शुरू में ही खत्म कर सकता था"।
इस मामले को सुलझाने के लिए कोर्ट ने प्रिंसिपल सेक्रेटरी (होम), लखनऊ को पर्सनल एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें यह बताया जाए कि राज्य पर भारी जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए।
जब 2 दिसंबर को इस मामले पर सुनवाई हुई तो प्रिंसिपल सेक्रेटरी (होम) ने एफिडेविट दाखिल किया। हालांकि, सरकारी वकील ने कहा कि कोर्ट FIR रद्द कर सकता है।
इस बयान को मानते हुए बेंच ने याचिका स्वीकार कर ली और FIR रद्द कर दी। हालांकि, कोर्ट ने अधिकारियों को 2021 के सख्त कानून के तहत बिना सोचे-समझे FIR दर्ज करने के खिलाफ चेतावनी दी।
Case title - Sabir Ali vs. State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Home, Lko. And Others