इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सज़ा के 38 साल बाद हत्या के आरोपी को बरी किया, कहा- 'मृतक की हत्या किसी और ने की थी'
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के 3 आरोपियों को बरी किया, जो उम्रकैद की सज़ा काट रहे थे। कोर्ट ने कहा कि हत्या एक ब्लाइंड मर्डर था और इसे किसी और ने अंजाम दिया था। कोर्ट ने कहा कि चश्मदीद और मेडिकल सबूतों में बड़े विरोधाभास हैं और अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपना मामला साबित करने में विफल रहा।
3 आरोपियों को बरी करते हुए जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस संजीव कुमार की बेंच ने कहा:
“हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपना मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है। ट्रायल जज ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों को सही नज़रिए से नहीं देखा और अनुमानों और सबूतों के गलत मूल्यांकन के आधार पर अपीलकर्ताओं के अपराध के बारे में गलत निष्कर्ष पर पहुंचे।”
शिकायतकर्ता का मामला था कि उसके भाई को हमलावरों/अपीलकर्ताओं ने पीट-पीटकर मार डाला। यह भी कहा गया कि एक आरोपी ने मृतक के शरीर में लाठी डाली थी। यह भी कहा गया कि अगर शिकायतकर्ता ने FIR दर्ज कराई या अपने भाई की मौत के बारे में पुलिस को बताया तो उसे जान से मारने की धमकी दी गई।
FIR दर्ज की गई और सभी 11 आरोपियों के खिलाफ जांच शुरू हुई। ट्रायल कोर्ट ने गवाहों और सबूतों की जांच करने के बाद कहा कि आरोपी भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 147, 302/149 के तहत दोषी हैं और उन्हें उम्रकैद की सज़ा दी गई, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने उचित संदेह से परे अपना मामला साबित कर दिया था।
कोर्ट ने कहा कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने मृतक के रेक्टम पर लगी चोटों को छिपाया था, लेकिन इससे बचाव पक्ष को कोई फायदा नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर मौजूद सीधे सबूत ठोस और भरोसेमंद हैं तो हाइपर-टेक्निकल मेडिकल सबूतों का अभियोजन पक्ष के मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा। ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को सभी आरोपियों ने चुनौती दी थी।
कोर्ट ने पाया कि 11 अपीलकर्ताओं में से 8 की अपील लंबित रहने के दौरान मौत हो गई। इसलिए उनके संबंध में अपीलें खत्म कर दी गईं। अपीलें 3 जीवित अपीलकर्ताओं/आरोपियों की ओर से सुनी गईं।
यह देखते हुए कि यह मृतक को लगी चोटों से हुई हत्या थी, कोर्ट ने कहा कि उचित संदेह से परे मामला साबित करने का बोझ अभियोजन पक्ष पर था। मृतक के भाई और उसके चाचा की गवाही के बारे में, जिन्होंने भाई को घटना के बारे में बताया, कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि चाचा को मृतक की पिटाई के बारे में किसने बताया। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी अनजान व्यक्ति ने चाचा को बताया होता तो अगर वह चाहता कि जानकारी भाई तक पहुंचे और वह उसे जानता होता तो वह सीधे भाई को ही बताता।
कोर्ट ने कहा कि जिस समय मृतक के भाई को बताया गया, उस समय से लेकर जब तक उसने गांव वालों को इकट्ठा किया और घटना वाली जगह पर पहुंचा, उसमें कम-से-कम एक घंटा लगा होगा। कोर्ट ने कहा कि यह मुमकिन नहीं है कि 11 हमलावर मृतक को एक घंटे तक जान से मारने की नीयत से पीटते रहें और उसके शरीर पर सिर्फ 10 चोटें ही हों।
आगे कहा गया,
“आम तौर पर 11 हमलावरों को यह अपराध करने में पांच से दस मिनट से ज़्यादा नहीं लगते। यह बहुत ही अजीब है कि आरोपी मृतक को इतनी देर तक पीटते रहें ताकि लोग मौके पर पहुंचें और उन्हें पहचान लें। इसलिए जिस तरह से और जितनी देर तक कथित घटना हुई बताई गई, वह बहुत ही अविश्वसनीय है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब किसी आम समझदार आदमी को पता चलता है कि उसके भाई की पिटाई हो रही है तो वह बिना हथियारों के नहीं जाएगा और सबसे छोटा रास्ता अपनाएगा। इसके बजाय खबर देने वाला और उसके चाचा खाली हाथ गए और लंबा रास्ता लिया, जिससे शक पैदा होता है।
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि भले ही भाई और चाचा दोनों ने आरोपी में से एक द्वारा मृतक के अंदर लाठी डालने की घटना का ब्योरा दिया, लेकिन जिस डॉक्टर ने पोस्टमॉर्टम किया, उसने कहा कि ऐसी कोई चोट नहीं थी।
यह देखते हुए कि डॉक्टर पर लापरवाही का कोई आरोप नहीं था, कोर्ट ने कहा,
“चश्मदीदों के सीधे सबूत और मेडिकल एक्सपर्ट के सबूत के बीच टकराव होने पर चश्मदीद की बात को माना जाएगा, जब तक कि मेडिकल सबूत चश्मदीद की बात को पूरी तरह से गलत साबित न कर दे। इस मामले में मेडिकल सबूत चश्मदीदों के सीधे सबूत को पूरी तरह से खारिज करते हैं। लाश पर मिली चोटें गवाही का समर्थन नहीं करती हैं। इस तरह चश्मदीद और मेडिकल सबूतों में बड़े विरोधाभास हैं, जो अभियोजन पक्ष के मामले पर गंभीर संदेह पैदा करते हैं।”
यह मानते हुए कि मृतक की हत्या रात के अंधेरे में किसी और ने की थी और अभियोजन पक्ष आरोपी का अपराध साबित करने में 'पूरी तरह से नाकाम' रहा, कोर्ट ने 3 जीवित आरोपियों को बरी कर दिया।
Case Title: Lala and another v. State [CRIMINAL APPEAL No. - 1071 of 1987]