इलाहाबाद हाईकोर्ट ने MBBS स्टूडेंट को राहत दी, बौद्ध धर्म प्रमाणपत्र को वापस लेने के यूपी सरकार के आदेश पर रोक लगाई
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा जारी आदेश पर रोक लगाई। उक्त आदेश में स्टूडेंट के बौद्ध धर्म प्रमाणपत्र को वापस लेने/रद्द करने का आदेश दिया गया था, जिसके कारण अंततः उसका सुभारती यूनिवर्सिटी, मेरठ में MBBS में एडमिशन रद्द हो गया था।
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस साल अगस्त में याचिकाकर्ता अंजलि का धर्म प्रमाणपत्र रद्द कर दिया था, जिसमें उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 की धारा 8 और 9 का हवाला दिया गया था।
यह निर्णय कथित तौर पर राज्य के अल्पसंख्यक विभाग को एक शिकायत मिलने के बाद लिया गया कि लगभग 20 MBBS उम्मीदवारों ने मेरठ के सुभारती यूनिवर्सिटी में अल्पसंख्यक कोटे के तहत सीट हासिल करने के लिए बौद्ध धर्म अपना लिया था।
चूंकि याचिकाकर्ता-अंजलि को उसके जाति प्रमाण पत्र के आधार पर उक्त यूनिवर्सिटी में एडमिशन दिया गया था, इसलिए यूनिवर्सिटी में उसका एडमिशन भी रद्द कर दिया गया। इसे चुनौती देते हुए उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ता के वकील (एडवोकेट आनंद मणि त्रिपाठी और अनुराग त्रिपाठी) ने तर्क दिया कि उन्हें और उनके माता-पिता को क्रमशः 2014 और 2019 में उनकी बौद्ध पहचान की पुष्टि करने वाले प्रमाण पत्र दिए गए थे। इस प्रकार, 2021 के अधिनियम के प्रावधानों का सहारा लेकर उनके प्रमाण पत्र रद्द करना गलत था।
यह भी आग्रह किया गया कि उक्त प्रमाण पत्र को वापस लेने से पहले याचिकाकर्ता को कोई अवसर नहीं दिया गया। अन्यथा भी, यह लागू नहीं होता। इस प्रकार, प्रमाण पत्र रद्द करने का आरोपित आदेश कानून की नजर में गलत है।
प्रतिवादी नंबर 4 (मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण महानिदेशक उत्तर प्रदेश) की ओर से पेश हुए वकील सैयद मोहम्मद हैदर रिजवी ने प्रस्तुत किया कि जहां तक उनका संबंध है, वे न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का पालन करने के लिए तैयार हैं। चूंकि एडमिशन रद्द करने का उनका आदेश पूरी तरह से प्रतिवादी नंबर 3 द्वारा पारित आदेश का परिणामी है, इसलिए वे न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का पालन करेंगे।
इसे देखते हुए यह देखते हुए कि मामले पर विचार की आवश्यकता है, जस्टिस जसप्रीत सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता के धर्म प्रमाण पत्र रद्द करने के यूपी सरकार के आदेश पर रोक लगाई।
न्यायालय ने कहा,
“उपर्युक्त तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए प्रथम दृष्टया आरोपित आदेश का पारित होना स्वयं में एकपक्षीय है। 2021 के अधिनियम के प्रावधानों को लागू करना संदिग्ध प्रतीत होता है। इसलिए 13.09.2024 के आरोपित आदेश के संचालन पर रोक रहेगी। याचिकाकर्ता के एडमिशन/पुनः एडमिशन पर उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादी नंबर 4 द्वारा उचित आदेश पारित किए जाएंगे।”
न्यायालय ने प्रतिवादियों से जवाब मांगा और मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर, 2024 से शुरू होने वाले सप्ताह में तय की।
केस टाइटल- अंजलि बनाम यूपी राज्य के माध्यम से अपर मुख्य/प्रधान सचिव, मेडिकल शिक्षा विभाग लखनऊ और अन्य