इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहुल गांधी के लोकसभा चुनाव को चुनौती देने वाली जनहित याचिका खारिज की

Update: 2024-07-02 05:52 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस (Congress) नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद के रूप में चुनाव रद्द करने के लिए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को वापस लेने की अनुमति दी।

जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने जनहित याचिका को वापस लेते हुए खारिज कर दिया, जबकि याचिकाकर्ता को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 9(2) के तहत सक्षम प्राधिकारी से संपर्क करने की अनुमति दी, जहां तक ​​कानून में इसकी अनुमति है।

खंडपीठ ने यह आदेश इसलिए दिया, क्योंकि याचिकाकर्ता (एस विग्नेश शिशिरा) ने करीब 20 मिनट तक व्यक्तिगत रूप से बहस करने के बाद अपनी जनहित याचिका को वापस लेने की मांग की, जिससे वह अपनी शिकायत को उठाने के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत सक्षम प्राधिकारी से संपर्क कर सकें।

महत्वपूर्ण बात यह है कि जनहित याचिका खारिज करने से पहले कोर्ट रूम में नाटकीय दृश्य सामने आए। याचिकाकर्ता के वकील की लगातार दलीलों पर आपत्ति जताने के बाद खंडपीठ को बीच में ही उठना पड़ा।

स्थिति तब और बिगड़ गई जब याचिकाकर्ता के वकील (अशोक पांडे) ने खंडपीठ द्वारा मामले की आगे सुनवाई करने में अनिच्छा व्यक्त करने के बावजूद अपनी दलीलें जारी रखने पर जोर दिया।

गौरतलब है कि 90 मिनट से अधिक समय तक चली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने वकील पांडे से बार-बार अपनी दलीलें समाप्त करने को कहा, यह देखते हुए कि उनकी दलीलें पहले ही काफी समय तक सुनी जा चुकी हैं।

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक BJP कार्यकर्ता एस. विग्नेश शिशिर ने वकील अशोक पांडे के माध्यम से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सांसद के रूप में चुनाव को इस आधार पर रद्द करने के लिए जनहित याचिका दायर की कि वह भारतीय, ब्रिटिश नागरिक हैं और इस प्रकार लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं।

याचिकाकर्ता के वकील (अशोक पांडे) और याचिकाकर्ता (एस. विग्नेश शिशिर) को लगभग 90 मिनट तक विस्तार से सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि वह मामले में आदेश सुरक्षित रख रही है। हालांकि, वकील पांडे ने आगे बहस करने पर जोर दिया, क्योंकि उन्होंने प्रस्तुत किया कि उनके पास "बहुत सारी दलीलें" हैं।

इस पर जब पीठ ने कहा कि उसने उन्हें और याचिकाकर्ता को अपनी दलीलें पेश करने का पर्याप्त अवसर दिया है और उनकी सभी दलीलों पर गौर किया गया है तो वकील पांडे अधीर हो गए और बोले:

"अभी हमें और सुनिए, दलीलें देने दीजिए। बोलने दीजिए। यहां 20-20 दिन बहस सुनी जाती है और आप हमें एक घंटा नहीं सुन रहे।"

जवाब में खंडपीठ ने कहा कि अगर दलीलें पर्याप्त रूप से ठोस हों तो उन मामलों में सुनवाई 20 दिनों तक चलती है। खंडपीठ ने फिर जोर दिया कि वकील पांडे द्वारा दी जा रही दलीलें पहले ही अदालत द्वारा सुनी और विचार की जा चुकी हैं।

खंडपीठ ने कहा,

"देखिए हो गया। आप (एडवोकेट पांडे) ऐसे करेंगे तो हमें उठना पड़ेगा। पूरा दिन काम करना है हमें, ऐसे मूड खराब करके कैसे होगा काम। बहस में 20-20 दिन सुनो जाती है वो मामले सुनने लायक भी होते हैं। हमें पूरा दिन काम करना है, अगर हम अपना मूड इस तरह खराब करेंगे तो हम कैसे काम करेंगे। जिन मामलों की सुनवाई 20-20 दिन तक होती है, वो भी सुनने लायक होते हैं।"

हालांकि, कोर्ट की टिप्पणियों के जवाब में एडवोकेट पांडे ने बेंच से "व्यक्तिगत न होने" का आग्रह किया।

इस पर बेंच ने टिप्पणी की,

"बस! आपने हमारे धैर्य की परीक्षा ली है। आप कोर्ट को हल्के में नहीं ले सकते। हमने आपको पर्याप्त मौके दिए हैं। अब, हम उठ रहे हैं। ऐसा लगता है कि आप नहीं चाहते कि हम अन्य मामलों की सुनवाई करें।

जब न्यायाधीश न्यायालय से बाहर जा रहे थे तो वकील पांडे ने टिप्पणी की,

"यह आखिरी अदालत नहीं है।"

केस टाइटल- एस. विग्नेश शिशिर बनाम राहुल गांधी, लोकसभा सदस्य और अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 416

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