दंगा मामले में नाबालिगों को झूठा फंसाए जाने पर दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बहराइच के एसपी को निर्देश दिया

Update: 2025-10-21 17:43 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने हाल ही में बहराइच के पुलिस अधीक्षक को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) और SC/ST Act के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज FIR में 13 और 11 वर्ष की आयु के दो नाबालिगों को 'झूठे फंसाए जाने' की जांच करने का निर्देश दिया।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि यदि एसपी को लगता है कि नाबालिगों को झूठा फंसाया गया है तो दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए।

खंडपीठ ने यह आदेश छह याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका का निपटारा करते हुए पारित किया, जिसमें BNS की धारा 191(1) [दंगा], 115(2) [स्वेच्छा से चोट पहुँचाना], 352 [शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना], 351(3) [आपराधिक धमकी], और 324(2) [शरारत] के साथ-साथ SC/ST Act की धाराओं के तहत दर्ज FIR रद्द करने की मांग की गई।

सुनवाई के दौरान, खंडपीठ ने इस तथ्य पर गंभीरता से ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता नंबर 3 (दानिश, उम्र 13 वर्ष) और याचिकाकर्ता नंबर 6 (जीनत, उम्र 11 वर्ष) को मामले में आरोपी बनाया गया।

कोर्ट ने बहराइच के पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे "उपरोक्त तथ्य की सावधानीपूर्वक जांच करें" और यदि यह पाया जाता है कि नाबालिगों को "गलत तरीके से फंसाया गया" तो "दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित आदेश पारित करें"।

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वकील एडवोकेट ज़िया-उर-रहमान ने तर्क दिया कि FIR में आरोपित सभी अपराध सात वर्ष से कम कारावास से दंडनीय हैं, फिर भी पुलिस BNSS की धारा 35(3) का उल्लंघन करते हुए उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास कर रही है।

राज्य की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील दिव्या गुप्ता ने दलील दी कि चूँकि इन अपराधों में सात वर्ष से कम कारावास का प्रावधान है, इसलिए जांच एजेंसी BNSS की धारा 35(3) का कड़ाई से पालन करेगी, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार और सतेंद्र कुमार अंतिल मामलों में आदेश दिया था।

एजीए के आश्वासन पर ध्यान देते हुए खंडपीठ ने याचिका का निपटारा करते हुए यह स्पष्ट किया कि जांच एजेंसी को अर्नेश कुमार और सतेंद्र कुमार अंतिल मामले में दिए गए निर्देशों का "अक्षरशः" पालन करना होगा।

इसके अलावा, न्यायालय ने याचिकाकर्ता नंबर 1, 2, 4 और 5 को जांच में सहयोग करने के लिए 16 अक्टूबर, 2025 को ठीक 11:00 बजे जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया। इसमें चेतावनी दी गई कि ऐसा न करने पर अभियोजन पक्ष या शिकायतकर्ता द्वारा आवेदन करने पर कोर्ट द्वारा प्रदत्त संरक्षण वापस लिया जा सकता है।

Case title - Ek Lakh Ali @ Ekhlakh And Others vs. State Of U.P. Thru. Secy. Home Lko. And Others

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