एनडीपीएस मामले में एक ही व्यक्ति जाँच अधिकारी और शिकायतकर्ता दोनों नहीं हो सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-12-03 05:33 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटांस एक्ट, 1985 के तहत अगर एक ही व्यक्ति को जाँच अधिकारी और शिकयतकर्ता होने की छूट दी जाती है तो इससे इस अधिनियम को नुक़सान पहुँचेगा।

यह फ़ैसला न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने दिया।

कोर्ट गुरतेज सिंह बट्ट की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला दिया। इस याचिका में अगस्त 2014 में दिए  गये फ़ैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें इस व्यक्ति को एनडीपीएस के तहत 10 साल की सश्रम कारावास की सज़ा दी गई थी।

बट्ट ने अब दावा किया है कि वह निर्दोष है और यह भी कहा कि सुनवाई में जाँच अधिकारी ही अपीलकर्ता भी था। विशेष जज ने कहा कि हालाँकि आईओ राजेंद्र वर्मा ने यह शिकायत सरकारी अधिकारी के रूप में किया है पर हाईकोर्ट ने उनकी दलील से हमत नहीं हुआ।

न्यायमूर्ति शंकर ने मोहन लाल बनाम पंजाब राज्य और आरिफ़ खान बनाम उत्तराखंड मामले में आए फ़ैसलों का हवाला दिया। मोहन लाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एनडीपीएस मामलेओं में जाँच अधिकारी और शिकायतकर्ता दोनों एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता है।

कोर्ट ने कहा कि अगर एक ही व्यक्ति को जाँचकर्ता और शिकायतकर्ता दोनों ही होने की इजाज़त दे दी गई तो इससे इस अधिनियम की फ़ज़ीहत होगी। कोर्ट ने कहा की वर्तमान मामले में भी राजेंद्र वर्मा आईओ भी है और शिकायतकर्ता भी और इसकी वजह से इस मामले की सुनवाई की फ़ज़ीहत हो गई।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का भी उल्लंघन हुआ है।

इसलिए कोर्ट ने भट्ट की याचिका स्वीकार कर ली और कहा की अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ जो सुनवाई हुई है वह ऊपर दिए गये कारणों से पूरी तरह गड़बड़ हो गई है।

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