निर्भया के दोषियों को दो हफ्ते में फांसी हो : सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका
देश को दहला देने वाले निर्भया गैंगरेप केस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर आग्रह किया गया है कि केंद्र सरकार को याचिका पहली बार सूचीबद्ध होने के बाद दो हफ़्ते में निर्भया केस के चार दोषियों को फांसी देने के निर्देश दिए जाएं।
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने ये याचिका दाखिल की है। याचिका में ये भी मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट एक दिशा निर्देश जारी करे कि रेप और हत्या जैसे अपराध करने पर आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी पाए जाने के आठ महीने के भीतर फांसी पर लटकाया जाए।
याचिका में श्रीवास्तव ने कहा है कि हाल ही में मीडिया में खबर आई है कि एक अभियुक्त ने कबूला है कि उसने गुरुग्राम में 9 बच्चियों के साथ रेप किया और फिर बुरी तरह हत्या की। ऐसे मामलों में अगर जल्द फांसी नहीं दी जाती है तो सख्त सजा का मकसद नहीं रहता। हालांकि संसद ने इसे लेकर कठोर कानून बनाया है और अदालत ने भी कड़ा रुख अपनाया है, इसके बावजूद भी ऐसी वारदातों में बढोतरी हुई है।
याचिका में ये भी कहा गया है की निर्भया के दोषियों की पुनर्विचार याचिका को खारिज हुए साढे चार महीने बीत गए और अभी तक उनको फांसी नहीं दी गई है। ऐसे मामलों में देरी नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को दो हफ्ते के भीतर चारों को फांसी देने के निर्देश दे।
श्रीवास्तव ने याचिका में सुप्रीम कोर्ट से इस तरह के गंभीर मामलों में आठ महीने के भीतर फांसी देने के लिए समय सीमा तय करने का आग्रह भी किया है।
दरअसल 5 मई 2017 को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आर बानुमति और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए मुकेश, अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा और पवन की फांसी की सजा को बरकरार रखा था।
इसके बाद 9 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने सजायाफ्ता मुकेश, विनय शर्मा और पवन गुप्ता की पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए उनकी फांसी की सजा बरकरार रखी जबकि चौथे दोषी अक्षय ने पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं की।
गौरतलब है कि 16 दिसंबर 2012 की रात को पांच लोगों ने एक नाबालिग के साथ मिलकर बस में 23 साल की फिजियोथैरेपिस्ट के साथ बलात्कार किया और उसके साथ उसके दोस्त की लोहे की रॉड ये पिटाई की। फिर दोनों को बस से धक्का दे दिया गया। पीडिता का नाम निर्भया रखा गया और दो हफ्ते बाद उसने दम तोड दिया। इस मामले में पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया जहां एक ने तिहाड जेल में खुदकुशी कर ली। नाबालिग को 31 अगस्त 2013 को तीन साल के लिए सुधारगृह भेजा गया और दिसंबर 2015 में उसे रिहा कर दिया गया।