आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ पीड़ित बिना अनुमति लिए अपील दाखिल कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-10-13 16:26 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी आरोपी को बरी किए जाने की स्थिति में पीड़ित को उसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है।

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने बहुमत के इस फैसले में कहा, “कानून की सरल भाषा और कई हाईकोर्टों की इस बारे में व्याख्या और फिर संयुक्त राष्ट्र की महासभा के प्रस्ताव द्वारा दिये गए फैसले के आधार पर यह काफी स्पष्ट है कि सीआरपीसी की धारा 2 में जिसे पीड़ित कहा गया है, उसे उस कोर्ट में अपील का अधिकार होगा जिस कोर्ट में साधारणतया सजा के खिलाफ अपील की जाती है”। इस तीन सदस्यीय पीठ के एक सदस्य न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर ने इस फैसले से सहमति जताई जबकि न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने इसके खिलाफ अपना फैसला लिखा।

अपील के लिए विशेष अनुमति की जरूरत के बारे में बहुमत के इस फैसले में कहा गया, “सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान इस बारे में स्पष्ट है...इस प्रावधान की बातें स्पष्ट हैं और शिकायतकर्ता से संबंधित मामले में यह बरी किए जाने के आदेश तक ही सीमित है। “शिकायत” शब्द को सीआरपीसी की धारा 2(d) में परिभाषित किया गया है और इसके तहत ऐसी कोई भी शिकायत आ सकती है जो किसी मजिस्ट्रेट को मौखिक या लिखित रूप में दिया गया है। इसका एफआईआर दर्ज कराने से कोई मतलब नहीं है और इसलिए इस बात पर गौर करने की कोई जरूरत नहीं है कि पीड़ित ही शिकायतकर्ता भी है”।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने बहुमत के इस फैसले के खिलाफ अपना फैसला लिखा कि पीड़ित को आरोपी को बरी किए जाने के खिलाफ अपील करने के लिए अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। इस फैसले के विरोध में लिखे अपने फैसले में न्यायमूर्ति गुप्ता ने लिखा, “अगर मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि अगर पीड़ित को हाईकोर्ट में अपील दाखिल करनी है तो उसे विशेष अनुमति लेने की जरूरत नहीं है तो एक अन्य नियमविरुद्ध स्थिति पैदा हो जाएगी। फर्ज कीजिये कि एक मामले में दो पीड़ित हैं,और इनमें से एक पीड़ित शिकायत दर्ज कराता है और इस मामले की सुनवाई शिकायतकर्ता के मामले के रूप में होती है। अगर आरोपी को बरी कर दिया जाता है और पीड़ित जिसने शिकायत की है, हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अपील करना चाहता है, तो उसको अपील के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ेगी जबकि दूसरे पीड़ित, जिसने शुरू में कोर्ट का दरवाजा भी नहीं खटखटाया है,को अनुमति लिए बगैर अपील दायर करने का अधिकार होगा। पर कानून की यह मंशा नहीं रही होगी”।


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