सुप्रीम कोर्ट ने बीमा पॉलिसी में आनुवंशिक गड़बड़ी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को आंशिक रूप से स्थगित किया [आर्डर पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को आंशिक रूप से स्थगित कर दिया। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्वास्थ्य बीमा में आनुवंशिक गड़बड़ियों वाले लोगों के साथ होने वाले भेदभाव को असंवैधानिक बताया था, विशेषकर उस स्थिति में जब लोगों में आनुवंशिक गड़बड़ियों की जांच की उचित व्यवस्था नहीं है।
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ ने निर्देश दिया है कि बीमा विनियमन और विकास प्राधिकरण (आईआरडीए) को इस मामले में एक पक्षकार बनाया जाए। यह अपील यूनाइटेड इंडिया इन्स्योरेंसे कंपनी ने दायर की है।
संबंधित आदेश में न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि स्वास्थ्य बीमा का अधिकार प्राप्त करना स्वास्थ्य के अधिकार का हिस्सा है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इसकी गारंटी मिली हुई है।
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि बीमा पालिसी में “आनुवंशिक गड़बड़ी’ के आधार पर बहिष्करण अस्पष्ट और भेदभावपूर्ण है। इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
कोर्ट ने कहा, “...बीमा कंपनियों का करार मनमाना और बहिष्करण को जन्म देने वाला नहीं होना चाहिए। इस तरह का करार अनुभवजन्य जांच और आंकड़ों के आधार पर होना चाहिए न कि अनुमान पर आधारित। इस दिशा में कोई जरूरी कदम क़ानून निर्माता उठा सकते हैं”।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को लागू किये जाने पर निम्नांकित आधार पर रोक लगा दी है -
- ‘आनुवंशिक गड़बड़ी’ एक व्यापक बहिष्करण है और यह मात्र करार संबंधी नहीं है और न ही यह किसी बीमित व्यक्ति और बीमा कंपनी के बीच का मामला है। यह स्वास्थ्य के अधिकार तक जाता है। इस बारे में उचित फ्रेमवर्क बनाने की तत्काल जरूरत है ताकि आनुवंशिक गड़बड़ी के आधार पर भेदभाव को समाप्त किया जा सके। फिर इनके बारे में डाटा के संग्रहण, उसकी सुरक्षा और गोपनीयता का मामला भी है;
- बीमा पालिसी में‘आनुवंशिक गड़बड़ी’ के क्लॉज काफी व्यापक हैं और साथ ही साथ अस्पष्ट और भेदभावपूर्ण भी और इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है;
- आईआरडीए को निर्देश दिया जाता है कि वह बीमा करार में बहिष्करण संबंधी उपबंधों पर गौर करे और यह सुनिश्चित करे कि बीमा कम्पनियां आनुवंशिक गड़बड़ियों के आधार पर दावे को अस्वीकार न करें।