यह “उचित विचार” क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने हर मामलों में तार्किक आदेश देने की जरूरत पर जोर दिया [निर्णय पढ़ें]
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए एक बार फिर हाईकोर्टों द्वारा अतार्किक आदेश पास करने की परिपाटी की आलोचना की।
न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ याचिका की सुनवाई कर रहे थे जिसमें कर्मचारी भविष्य निधि अपीली अधिकरण के आदेश को सही ठहराया था।
हाईकोर्ट का आदेश शुरू होता है मामले के तथ्यों के साथ लेकिन अपने निर्णय के बारे में कोई कारण नहीं देता है। कोर्ट कहता है, “उपलब्ध ताजा दस्तावेजों और हलफनामे के तथ्यों पर पर्याप्त रूप से गौर करने के बाद हम संस्था को मार्च 2006 से अप्रैल 2010 की अवधि तक के लिए हर्जाना चुकाने का आदेश नहीं दे सकते हैं क्योंकि इन सभी आपत्तियों को अधिकरण के सामने नहीं उठाया गया था।”
आदेश पर गौर करने के बाद पीठ ने कहा, “इस मामले का निस्तारण करते हुए खंडपीठ ने जिस एकमात्र अभिव्यक्ति का प्रयोग किया है वह है “उचित विचार” के बाद। हमें यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि यह उचित विचार क्या है जिसकी वजह से खंडपीठ इस रिट याचिका को निस्तारित करने को प्रेरित हुआ क्योंकि हम पाते हैं कि इसके पूर्व के पैरा में सिर्फ तथ्यों का उल्लेख किया गया है।”
पीठ ने आगे कहा, “हमने बार-बार कहा है कि अदालतों को चाहिए कि वह हर मामले में तार्किक आदेश पास करें जिसमें विभिन्न पक्षों के मामलों के बारे में तथ्यों का उल्लेख हो, मामले में उठे मुद्दे शामिल हों, पक्षकारों द्वारा उठाए गए मुद्दे हों, मामले से जुड़े क़ानूनी सिद्धांतों का जिक्र हो, मामले में उठने वाले सभी मुद्दों के जांच परिणामों के समर्थन में तर्क दिए जाएं और पक्षकारों के वकीलों द्वारा अपने निष्कर्ष में जो बातें कही गई हैं उनका जिक्र होना चाहिए। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि खंडपीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए इन सिद्धांतों को ध्यान में नहीं रखा। इस तरह का आदेश, हमारे विचार में, निस्संदेह पक्षकारों के लिए पक्षपातपूर्ण है क्योंकि उन्हें यह नहीं बताया गया कि क्यों किसी पक्ष ने मुकदमा जीता है और किसी ने हारा है...”
पीठ ने इस मामले को हाईकोर्ट को दुबारा गौर करने के लिए वापस भेज दिया।