सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्टों में आपराधिक मामलों के लंबित रहने पर चिंता जताई; तदर्थ जजों की नियुक्ति पर केंद्र और राज्यों से कार्य योजना बनाने को कहा [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-07-19 10:20 GMT

हाईकोर्टों में भारी संख्या में आपराधिक मामलों के लंबित होने पर अचंभित सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तदर्थ जजों की नियुक्ति नहीं करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की आलोचना की।

 न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने रतन सिंह नमक व्यक्ति की जमानत के आवेदन पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। इस व्यक्ति की जमानत अर्जी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लंबित है और इस पर अभी विचार नहीं हुआ है।

 इसके बाद पीठ ने भारी संख्या में लंबित अपीलों पर गुस्सा जाहिर किया और इसे “निराशाजनक स्थिति” बताते हुए कहा,“मध्य प्रदेश में इस समय सिर्फ 2001 और 2002 की आपराधिक अपीलों पर सुनवाई हो रही है। देश के नागरिकों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है – बहुत सारे लोग जेलों में बंद हैं। केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने जो रुख अपनाया है उससे हम कतई खुश नहीं हैं।”

 कोर्ट ने दोनों सरकारों की आलोचना करते हुए तदर्थ जजों के नियुक्तियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और विभिन्न हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों द्वारा स्वीकार किए गए प्रस्ताव की चर्चा की। कोर्ट ने जानना चाहा कि इस प्रस्ताव पर क्या कदम उठाया गया है। कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा,

 हम जानना चाहते हैं कि इस प्रस्ताव के बारे में केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने क्या कदम उठाए हैं। सभी राज्यों को नोटिस जारी किया जाए।

 इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश के विभिन्न हाईकोर्टों में लंबित आपराधिक मामलों में अपील को बिना किसी और देरी के निपटाने की जरूरत है।”

 कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि केंद्र और राज्य आठ सप्ताहों के भीतर एक कार्य योजना सुझाएँ जिसमें तदर्थ जजों की नियुक्ति के बारे में जरूरी बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था करने और उनके काम काज के बारे में विस्तार से वर्णन हो।

कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 सितंबर को करेगी।

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