भीड़तंत्र की हिंसा बर्दाश्त नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए दिशा निर्देश, कहा सख्त कानून लाने पर विचार करे सरकार [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-07-17 16:35 GMT

गोरक्षकों और भीड़ द्वारा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कठोर टिप्पणियां करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को दिशा निर्देश जारी किए हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि भीड़तंत्र को किसी भी सूरत में क़बूल नहीं किया जा सकता। किसी भी स्वयंभू समाज रक्षक को क़ानून हाथ में लेने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। ऐसे मामलों से सख़्ती से निबटा जाए। केंद्र सरकार इसके लिए क़ानून लेकर आए जिसमें सख्त सजा का प्रावधान हो और राज्य सरकारें देश का धर्मनिरपेक्ष और क़ानूनी ढांचा कायम रखें।

गोरक्षा या बच्चा चोरी के नाम पर लगातार हो रही घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बहुत तीखी प्रतिक्रिया जताई है। पीठ ने निरोधक, उपचारात्मक और दंडात्मक दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा है कि राज्य सरकार हर जिले में एसपी स्तर के अधिकारी को नोडल अफसर नियुक्त करें। जो स्पेशल टास्क फोर्स बनाए. DSP स्तर का अफसर मॉब हिंसा और लिंचिंग को रोकने में सहयोग करेगा। एक स्पेशल टास्क फोर्स होगी जो खुफिया सूचना इकठा करेगी जो इस तरह की वारदात अंजाम देना चाहते हैं या फेक न्यूज, या हेट स्पीच दे रहे हैं। राज्य सरकार ऐसे इलाकों की पहचान करें जहां ऐसी घटनाएं हुई हों और पांच साल के आंकडे इकट्ठा करे। केंद्र और राज्य आपस मे समन्वय रखे। सरकार  भीड़ द्वारा हिंसा के खिलाफ प्रचार प्रसार करें। ऐसे मामलों में 153 A या अन्य धाराओं में  तुरंत केस दर्ज हो और वक्त पर चार्जशीट दाखिल हो और नोडल अफसर इसकी निगरानी करे। राज्य सरकार CrPC की धारा 357 के तहत भीड़ हिंसा पीड़ित मुआवजा योजना बनाएं और चोट के मुताबिक मुआवजा राशि तय करे। ये मामले फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में केस चले और संबंधित धारा में ट्रायल कोर्ट अधिकतम सजा दे। लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से चार हफ्ते में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। मामले को 28 अगस्त को सूचीबद्ध किया गया है।

तीन जुलाई को गोरक्षा के नाम पर हिंसा के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इस मुद्दे पर  विस्तृत आदेश जारी करेगा।  चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों की निगरानी करने , घटना होने पर जवाबदेही तय करने और पीडित को मुआवजा देने पर आदेश जारी करना था।

हालांकि सुनवाई के दौरान CJI दीपक मिश्रा ने कहा था कि गोरक्षा या किसी अन्य के नाम पर हिंसा को मंजूर नहीं किया जा सकता। चाहे कानून हो या नहीं, कोई भी  कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता और ये राज्यों का दायित्व है कि वो इस तरह की घटनाएं ना होने दे।

इस दौरान याचिकाकर्ता तुषार गांधी की ओर से से पेश इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि कोर्ट के आदेश के बावजूद दिल्ली से 60 किलोमीटर दूर ऐसी घटना हो गई।असामाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ गया है और वो गाय से आगे बढ़कर बच्चा चोरी का आरोप लगाकर खुद ही कानून हाथ मे लेकर लोगों को मार रहे हैं। महाराष्ट्र में ऐसी घटनाएं हुई हैं। उन्होंने कहा कि मुआवजे का आदेश देते वक्त  धर्म, जाति और लिंग को ध्यान मे रखा जाए लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है उसे अलग करके नहीं देखा जा सकता है।

वहीं याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला की ओर से वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने इन घटनाओं से निपटने और घटना होने के बाद अपनाए जाने वाले कदमों पर विस्तृत सुझाव कोर्ट के सामने रखे थे। इन सुझावों में नोडल अधिकारी, हाइवे पेट्रोल, FIR, चार्जशीट और जांच अधिकारियों की नियुक्ति जैसे कदम शामिल हैं।

वहीं यूपी सरकार की ओर से कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक राज्य में नोडल अफसर नियुक्त किया गया है तो केंद्र सरकार ने कहा कि कानून व्यवस्था राज्यों के जिम्मे है, केंद्र ने राज्यों को एडवाइजरी जारी कर दी है।

दरअसल गोरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की माँग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।

जनवरी में गोरक्षकों  द्वारा हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों ना उनके खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला चलाया जाए। हालांकि कोर्ट ने मुख्य सचिवों को निजी तौर पर पेश होने से छूट दे दी थी।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने तुषार गांधी द्वारा दाखिल अवमानना याचिका पर ये निर्देश जारी किए थे।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ये राज्य हिंसा रोकने में नाकाम रहे हैं और इन राज्यों में गोरक्षा के नाम पर हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं। इसलिए उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि 6 सितंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा था कि गोरक्षा के नाम पर हिंसा रुकनी चाहिए। घटना के बाद ही नहीं उससे पहले भी रोकथाम के उपाय जरूरी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए कहा था कि हर राज्य में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए हर जिले में वरिष्ठ पुलिस पुलिस अफसर को नोडल अफसर नियुक्त हों जो ये सुनिश्चित करे कि कोई भी विजिलेंटिज्म ग्रुप कानून को अपने हाथों में ना ले। अगर कोई घटना होती है तो नोडल अफसर कानून के हिसाब से कारवाई करे।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अमिताव रॉय और जस्टिस ए एम खानविलकर की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को डीजीपी के साथ मिलकर हाईवे पर पुलिस पेट्रोलिंग को लेकर रणनीति तैयार करने को कहा था।

तुषार गांधी की ओर से दाखिल हस्तक्षेप याचिका पर पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि देशभर में गोरक्षा के नाम पर 66 वारदातें हुई हैं। केंद्र सरकार कह रही है कि ये राज्यों का मामला है जबकि संविधान के अनुसार केंद्र को राज्यों को दिशा निर्देश जारी करने चाहिए।

वहीं तीन राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र और गुजरात की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने कहा था कि राज्य इस संबंध में कदम उठा रहे हैं।

इससे पहले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 6 राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।गुजरात, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक को नोटिस जारी किया था। वहीं केंद्र सरकार ने इस मामले में पल्ला झाडते हुए कहा था कि ये कानून व्यवस्था का मामला है और राज्य सरकारें ऐसे मामलों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कारवाई कर रही है। केंद्र ने ये भी कहा था कि इस तरीके से कानून को हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती।


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