NCPCR द्वारा सामाजिक आडिट का विरोध करने वाले राज्य "कुछ छिपा" रहे हैं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2018-07-14 05:00 GMT

 सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एकीकृत बाल संरक्षण योजना (ICPS ) के तहत फंड के इस्तेमाल ना करने पर राज्य सरकारों को फटकार लगाई।

इस तौर तरीके की निंदा करते हुए न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा, "यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। चूंकि बच्चों के लाभ के लिए धन उपलब्ध कराया जाता है, यदि राज्य सरकारें उनका उपयोग नहीं करती हैं तो नुकसान राज्य के बच्चों का है। "

 न्यायालय ने यह भी नोट किया कि धन के गैर-उपयोग के अलावा कुछ राज्यों ने न तो उपयोग प्रमाण पत्र दिए हैं, न ही वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए कार्रवाई की कोई योजना तैयार की है। इसके अलावा यह सूचित किया गया था कि वास्तव में आईसीपीएस फंड का उपयोग करने वाले राज्य ऐसे फंड के उपयोग के लिए कार्यक्रमों के प्रदर्शन लेखा परीक्षा दर्ज करने में असफल रहे हैं। इसलिए अदालत ने राज्यों को इन शर्तों का अनुपालन करने का निर्देश दिया और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को जल्द ही इस संबंध में एडवायजरी जारी करने के लिए  आदेश दिया।

 मई, 2017 में जारी किए गए आदेश पर हुई प्रगति पर न्यायालय को सूचित किया गया जिसमें  अनाथाश्रमों और बाल संस्थानों में रहने वाले बच्चों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे।

 उसके बाद इस साल अप्रैल में उसने यह सुनिश्चित करने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को निर्देश दिया था कि व्यक्तिगत बाल देखभाल योजनाएं " सही भावना" में लागू की जाएंगी।

मामला अब 10 अगस्त को सूचीबद्ध किया गया है।

बाल देखभाल संस्थानों की सूची 

 बुधवार को सुनवाई के दौरान विशेष रूप से केरल राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील बालगोपाल ने अदालत को संबोधित किया, जिन्होंने बेंच को बताया कि अनाथाश्रम और अन्य चैरिटेबल होम (पर्यवेक्षण और नियंत्रण) अधिनियम, 1960 के नियंत्रण में 1189 अनाथाश्रम हैं । हालांकि अदालत ने नोट किया कि राज्य द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और आंकड़ों में "स्पष्टता की कमी"  है। उदाहरण के लिए, इसने नोट किया कि राज्य ने अधिनियम के तहत पंजीकृत धर्मार्थ संस्थानों की संख्या, हॉस्टल और मदरसा में परिवर्तित बाल देखभाल संस्थानों की संख्या और इन संस्थानों में बच्चों की संख्या निर्दिष्ट नहीं की है। इसलिए राज्य को हलफनामे में आवश्यक जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया। वित्तीय अनुदान और उनके उपयोग से संबंधित विवरण को भी रिकॉर्ड पर देने के लिए निर्देशित किया गया है।

सामाजिक लेखा परीक्षा 

 सामाजिक लेखा परीक्षा के संबंध में अदालत ने चिंता के साथ इस तथ्य को नोट किया कि बड़ी संख्या में राज्यों ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) या इसकी एजेंसी को ऐसे लेखा परीक्षा करने की अनुमति नहीं दी है। वास्तव में यह निर्धारित किया गया कि न्यायालय के निर्देश का अनुपालन करने में राज्यों का प्रतिरोध इंगित करता है कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ हो सकता है।

 "हम यह स्पष्ट करते हैं कि चूंकि इस न्यायालय के दिशा निर्देश हैं और यदि राज्य सरकार सामाजिक लेखा परीक्षा करने में विरोध कर रही है  तो ऐसा लगता है कि वे कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे हैं और इसलिए वे इस अदालत के दिशा-निर्देशों के तहत सामाजिक लेखापरीक्षा नहीं करना चाहते।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये राज्य सरकारें छिपकर खेल रही हैं और खेल तलाश रही हैं। अदालत ने फिर लेखा परीक्षा आयोजित करने के लिए एनसीपीसीआर को अपने दिशा निर्देश दोहराए और केंद्र को निर्देश दिया कि वह सभी राज्य सरकारों को सलाह दे।

बेंच ने आदेश दिया, "भारत संघ सभी राज्य सरकारों को निर्देशों का अनुपालन करने के लिए एक सलाह भी जारी करेगा, विशेष रूप से इसमें वित्तीय प्रभाव शामिल हैं और हम सामाजिक लेखा परीक्षा के विरोध के कारण राज्य सरकारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के किसी भी आरोप को नहीं चाहते हैं। "

 सॉफ्टवेयर का उपयोग 

सूचित करने पर कि बिहार और असम राज्यों में यूनिसेफ के तहत  प्रबंधन सूचना सॉफ्टवेयर (एमआईएस) का उपयोग किया जा रहा है अदालत ने  महिला और बाल विकास मंत्रालय को  विभिन्न बाल देखभाल संस्थानों में सभी बच्चों के पूर्ण विवरण और उनके पुनर्वास के लिए योजनाओं को संग्रहित करने के लिए एमआईएस के उपयोग पर विचार करने के लिए उनके संपर्क में रहने का निर्देश दिया।

 तमिलनाडु राज्य में अनाथाश्रमों में बच्चों का शोषण 

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल मई में राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि सभी बाल देखभाल संस्थानों के पंजीकरण की प्रक्रिया साल के अंत से पहले पूरी हो जाए। उसने निम्नलिखित निर्देश जारी किए थे:




  • सुनिश्चित करें कि सभी बाल देखभाल संस्थानों के पंजीकरण की प्रक्रिया 31 दिसंबर, 2017 तक पूरी तरह से पूरी हो गई हो, पूरे डेटा की पुष्टि और सत्यापन किया गया हो।

  • जानकारी (संस्थानों से संबंधित) सभी संबंधित अधिकारियों के पास  उपलब्ध होनी चाहिए। पंजीकरण प्रक्रिया में देखभाल और सुरक्षा की ज़रूरत वाले सभी बच्चों का डेटा बेस भी शामिल होना चाहिए जिसे हर महीने अपडेट किया जाना चाहिए। डेटाबेस को बनाए रखने के दौरान, संबंधित अधिकारियों द्वारा निजता और गोपनीयता के मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

  •  जे जे अधिनियम और मॉडल नियमों के आधार पर और आवश्यकतानुसार देखभाल के न्यूनतम मानकों को31 दिसंबर, 2017 से पहलेलागू करें

  •  जेजे अधिनियम और मॉडल नियमों द्वारा बाल देखभाल संस्थानों के नियमित निरीक्षण करने और ऐसे निरीक्षणों की रिपोर्ट तैयार करने के लिए आवश्यक निरीक्षण समितियों की स्थापना करें ताकि इन संस्थानों में रहने वाले बच्चों कीस्थिति में सकारात्मक परिवर्तन हो।ये निरीक्षण समितियां 31 जुलाई, 2017 तक या उससे पहले गठित की जानी चाहिए।

  •  इन निरीक्षण समितियों को अपने अधिकार क्षेत्र में बाल देखभाल संस्थानों का पहला निरीक्षण करना चाहिए और31 दिसंबर, 2017 तक या उससेपहले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की संबंधित सरकार को एक रिपोर्ट जमा करनी चाहिए।

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