हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा, सरकारी मदद नहीं लेने वाले निजी शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और फीस संरचना को विनियमित करने के लिए तीन महीने में क़ानून बनाए

Update: 2018-06-17 15:52 GMT

हाईकोर्ट ने कहा, एससी, एसटी, ओबीसी, बीपीएल दिव्यांग और स्वतंत्रता  सेनानियों के बच्चों से भारी फीस नहीं वसूली जानी चाहिए

उत्तराखंड के कुछ हिस्से देश में शिक्षा के केंद्र माने जाते हैं।  भारी संख्या में छात्रों को राहत दिलाते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से तीन महीने के भीतर उन निजी शिक्षा संस्थानों में फीस और प्रवेश की प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक क़ानून लाने को कहा है। इन संस्थानों में अत्यधिक फीस लिए जाने के कारण लोग परेशान हैं।

न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और लोक पाल सिंह  की पीठ ने न्यायमूर्ति गुरमीत राम की प्रवेश और फीस विनियमन समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अपीली न्यायाधिकरण के अध्यक्ष  के रूप में नियुक्ति को निरस्त कर दिया क्योंकि इन लोगों की नियुक्ति 2010 में उत्तराखंड अन-ऐडेड प्राइवेट प्रोफेशनल एजुकेशन इंस्टीटूशन्स (रेगुलेशन ऑफ़ एडमिशन एंड फिक्सेशन ऑफ़ फी) एक्ट, 2006 में संशोधन से हुई थी।

इस संशोधन से पहले ये नियुक्तियां हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी।

पीठ ने राज्य से कहा है कि वह इन समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश को अपना सुझाव भेजे।  कोर्ट ने कहा है कि प्रवेश और फीस विनियमन समिति यह सुनिश्चित करेगी कि एससी, एसटी, ओबीसी, दिव्यांगों, बीपीएल, और स्वतंत्रता  संग्रामियों के बच्चों से अत्यधिक फीस नहीं वसूली जाए।

प्रदीप दत्ता नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने उक्त आदेश दिए।  इस याचिका में कहा गया है कि कैसे सरकारी मदद नहीं लेने वाले राज्य के पेशेवर शिक्षा संस्थान भारी फीस वसूल रहे हैं और छात्रों को अग्रिम बैंक गारंटी देने को कहा जाता है जबकि गरीब छात्र  तो इन संस्थानों में प्रवेश ही नहीं ले सकते हैं।

दत्ता के वकील  ने कहा कि क़ानून बनाए जाने  के बावजूद राज्य सरकार ने निजी क्षेत्र के शिक्षा संस्थानों में फीस की निगरानी के लिए कोई कदम नहीं उठाया है।

पीठ के मुख्य निर्देश :




  1. सरकार ने 26  मार्च 2010 को जारी अधिसूचना के द्वारा अधिनियम में जो संशोधन किए गए उन्हें निरस्त किया जाता है।

  2. न्यायमूर्ति गुरमीत राम और बृजेश कुमार श्रीवास्तव की सरकार द्वारा नियुक्ति रद्द  की जाती है।

  3. राज्य सरकार को निर्देश दिया जाता है कि  वह प्रवेश और फीस निगरानी समितियों और अपीली प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में हाईकोर्ट के पूर्व जजों की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को आज से तीन  सप्ताह के भीतर अपना प्रस्ताव भेजे।

  4. हम सुझाव देते हैं कि राज्य सरकार आज से तीन माह के भीतर ऐसा उपयुक्त क़ानून बनाए ताकि निजी और  सरकार से मदद नहीं लेने वाले संस्थानों में प्रवेश और फीस की निगरानी की जा सके।

  5. प्रवेश और फीस विनियमन समिति यह सुनिश्चित करेगी कि  एससी, एसटी, ओबीसी, बीपीएल, दिव्यांग और स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों से अत्यधिक फीस नहीं वसूली जाए।

  6. प्रवेश और फीस विनियमन समिति को निर्देश दिया जाता है कि  वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2003 (6) SCC 697 मामले (
    इस्लामिक
    अकादेमी ऑफ़ एजुकेशन एवं अन्य बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य औरपीए  इनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2005 ) में दिए गए फैसले के अनुरूप फीस की निगरानी करे।


पीठ ने कहा की निजी स्कूलों को चाहिए कि वे गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले छात्रों को कम से कम 5% आरक्षण उपलब्ध कराए।  कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि सरकारी कर्मचारी सहित अन्य माँ -बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में इसलिए नहीं भेजते क्योंकि इनमें उचित व्यवस्था नहीं होती,  विशेषकर ग्रामीण इलाकों में जिसकी वजह से गांवों का विकास और अवरुद्ध हो रहा है।


 

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