दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदी में DU एलएलबी प्रवेश परीक्षा आयोजित करने की याचिका खारिज की [निर्णय पढ़ें]
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय में एलएलबी कोर्स के लिए हिंदी में प्रवेश परीक्षा आयोजित करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) को निर्देश देने की याचिका खारिज कर दी है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की बेंच आयुष तिवारी द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रही थी।
न्यायालय ने 2014 में अदालत के सिंगल जज द्वारा हिंदी हितरक्षक समिति और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व अन्य के मामले में फैसले पर भरोसा करते हुए निर्णय पर ध्यान दिया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया था कि किसी भी विशेष भाषा में प्रवेश परीक्षा नहीं कराना भाषा के आधार पर प्रवेश से इनकार करना है।
सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा था, "हो सकता है कि हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाएं बहुत से लोगों को शिक्षा प्रदान करने के लिए अधिक उचित माध्यम हों और किसी भी विशेष क्षेत्रीय या हिंदी भाषा में प्रवेश परीक्षाएं या अन्यथा आयोजित करना उचित और सही हो सकता है या हो सकता है कि उस भाषा के विकास के कारण हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा, चिकित्सा और दंत चिकित्सा विषयों में होने वाले ज्ञान या क्षमता को ट्रांसमिट या परीक्षण करने के लिए अभी तक उचित माध्यम नहीं है। यह किसी विशेष स्थिति के प्रभारी राज्य या शैक्षिक प्राधिकरण की नीति के निर्माण का विषय है । "
इसके अलावा सिंगल जज ने यह भी नोट किया था कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 348 सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के साथ-साथ अधिनियमों और बिलों के लिए अंग्रेजी के उपयोग को निर्धारित करता है। उन्होंने आगे कहा था कि अगर राहत दी गई तो यह डीयू की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करने की ताकत रखेगी। न्यायाधीश के फैसले को उसी वर्ष एक डिवीजन बेंच ने देखा था, जिसमें इस अवलोकन के साथ, "हम इस तथ्य पर भी अपनी आँखें बंद नहीं कर सकते हैं कि अदालतों की भाषा, खासकर दिल्ली में, मुख्य रूप से अंग्रेजी बनी हुई है और न्यायालयों के अंग्रेजी भाषा में निर्णय हैं।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और मुख्य न्यायाधीश के तबादले की नीति के कारण भी अंग्रेजी भाषा का उपयोग जरूरी है और क्योंकि दूसरे उच्च न्यायालय के जजों को हो सकता है कि हिंदी भाषा ना आती हो। "
समान तथ्यों वाले इन उदाहरणों के तहत अदालत अब जोर देकर एक ही निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए बाध्य हुई, इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।