अयोग्य घोषित करने की अपील पर निर्णय लेने के बारे में अध्यक्ष को याद दिलाने का मतलब न्यायिक पुनरीक्षण नहीं है : कर्नाटक हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-05-09 09:14 GMT

सदन के अध्यक्ष को अयोग्य करार दिए जाने के बारे में लंबित आवेदन पर सिर्फ निर्णय लेने की याद भर दिलाने का मतलब न्यायिक पुनरीक्षण नहीं होता, कोर्ट ने कहा।

एकल पीठ द्वारा कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष को जेडीएस विधायकों को अयोग्य घोषित करने के बारे में लंबित आवेदन पर निर्णय लने के लिए कहने को सही ठहराते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा कि पीठ को विधानसभा अध्यक्ष से इस आवेदन पर शीघ्रता से निर्णय लेने के लिए आग्रह करने का अधिकार है। खंडपीठ ने कहा कि ऐसा आग्रह करना न्याय के हित में है।

न्यायमूर्ति बी वीरप्पा और न्यायमूर्ति एस सुनील दत्त यादव ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दायर याचिका को बंद करते हुए कहा कि एकल जज ने सिर्फ अध्यक्ष को अपने संवैधानिक दायित्वों की याद दिलाई है। संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष को जो विशेष अधिकार प्राप्त है हाई कोर्ट उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता।

पीठ ने कहा, “...अध्यक्ष को अपने कर्तव्यों  की याद दिलाना और उनके पास की गई अपील पर शीघ्र निर्णय लने को कहने का मतलब न्यायिक पुनरीक्षण नहीं है।”

कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले में अध्यक्ष ने दो साल पहले जेडीएस विधायकों को अयोग्य करार देने संबंधित अपील पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लेकर अपने संवैधानिक दायित्वों का सम्यक निर्वहन नहीं किया है।

“राज्य के नागरिकों ने राज्य विधानसभा के अध्यक्ष में जो अपना विश्वास व्यक्त किया है, वास्तविक रूप से उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं। उन्होंने अपने संस्थागत जिम्मेदारियों व दायित्वों का निर्वहन नहीं किया है जैसा कि संविधान की 10वीं अनुसूची में उनसे अपेक्षा की गई है,” पीठ ने कहा।

अध्यक्ष की ओर से दायर मेमो पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि इसमें कहा गया है कि वे अंततः इस अपील पर 27 मई को निर्णय लेंगें। पीठ ने एकल पीठ द्वारा जारी निर्देश को संशोधित करते हुए कहा कि इस अपील पर 7 मई को या इससे पहले निर्णय लिया जाए। कोर्ट ने अध्यक्ष के बारे में एकल जज द्वारा की गई टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश भी दिया।


 Full View

Similar News