SARFAESI अधिनियम के तहत प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद दीवानी मामले पर गौर नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-05-07 08:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने श्री आनंदकुमार मिल्स बनाम इंडियन ओवरसीज बैंक के मामले में कहा कि सिक्यूरिटाईजेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन ऑफ़ फाइनेंसियल एसेट्स एंड एन्फोर्समेंट ऑफ़ सिक्यूरिटी इंटरेस्ट (SARFAESI) अधिनियम, 2002 के तहत कार्यवाही शुरू हो जाती है तो उसके बाद दीवानी मामले पर गौर नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर बनुमथी की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के 2010 के एक आदेश के खिलाफ एक याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही। पीठ ने कहा कि SARFAESI अधिनियम की धारा 34 के तहत दीवानी अदालत का क्षेत्राधिकार पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता है और निषेधाज्ञा का उसका अधिकार भी इससे समाप्त नहीं हो जाता। पीठ ने यह भी कहा कि दीवानी अदालत के क्षेत्राधिकार को उस सदर्भ में रोका गया है जब ऋण की वसूली के लिए किसी बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा कोई आवेदन दिया जाता है और अगर परिसंपत्तियों के विभाजन के लिए यह मामला वह व्यक्ति दायर करता है जो न तो ऋण लिया है और न ही इस मामले में गारंटर है तो इस मामले पर दीवानी अदालत में गौर किया जा सकता है।

पीठ ने कहा, “जगदीश सिंह बनाम हीरालाल एवं अन्य के मामले में इस कोर्ट ने निर्धारित किया है कि दूसरे प्रतिवादी द्वारा दायर मामले पर गौर नहीं किया जा सकता।”

जिस मामले की चर्चा हो रही है, उस मामले के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिसंपत्तियों के बंटवारे के लिए दायर याचिका पर उस स्थिति में विचार नहीं होगा अगर SARFAESI अधिनियम के तहत प्रकिया शुरू की जा चुकी है। इस प्रक्रिया के शुरू किये जाने के कारण अगर किसी पक्ष को नुकसान है तो इसके लिए वह इस अधिनियम की धारा 17 के तहत राहत की मांग कर सकता है।

इस मामले को बंद करते हुए पीठ ने कहा कि प्रतिवादी जिसने यह मामला दायर किया था, उसको SARFAESI अधिनियम की धारा 17 और 18 के तहत पर्याप्त उपचार उपलब्ध है।


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