सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन के भाजपा सांसद के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की शपथ भंग की कार्यवाही को बंद किया [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-04-29 08:39 GMT

हम इस बारे में आश्वस्त हैं कि वर्तमान मामले में कार्यवाही शुरू करना इस अदालत द्वारा स्थापित मानदंडों के अनुरूप नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन के भाजपा सांसद प्रो. चिंतामणि मालवीय के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा झूठी गवाही मामले में शुरू की गई कार्यवाही को बंद कर दिया है।

चुनाव आवेदन में प्रोसेस सर्वर के माध्यम से सांसद को नोटिस दिया गया। कोर्ट में पेशी की तिथि के महीनों बाद सांसद ने कोर्ट में एक आवेदन देकर कहा कि नोटिस एक कर्मचारी के खिलाफ तब दिया गया जब वे दिल्ली में थे उन्हें इस नोटिस के बारे में हाल में जानकारी मिली है।

चुनाव याचिकाकर्ता ने इसके बाद इस सांसद के खिलाफ कोर्ट में एक आवेदन देकर कहा कि सांसद का यह कहना कि चुनावी याचिका के तहत जारी नोटिस उसके एक कर्मचारी को दिया गया झूठ है क्योंकि प्रोसेस सर्वर ने वास्तव में सांसद को नोटिस जारी किया था। हाई कोर्ट ने इसके बाद रजिस्ट्री को आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया और सीआरपीसी की धारा 340 के तहत उपयुक्त जांच करने को कहा। इस बीच उसकी चुनाव याचिका भी खारिज कर दी गई।

यह आदेश देते हुए कोर्ट ने कहा, “जनता का प्रतिनिधि और प्रोफ़ेसर होने के कारण प्रतिवादी से उत्तरदायित्वपूर्ण कदम उठाने की उम्मीद की जाती है। कोर्ट में और विशेषकर हाई कोर्ट में पेश नहीं होने के परिणाम क्या होते हैं इससे उनको वाकिफ होना चाहिए। इसलिए, इस मामले में छूट की गुंजाइश नहीं है।”

सांसद ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। कोर्ट ने पाया कि हाई कोर्ट ने जो आकलन किया था वह चजू राम बनाम राधेश्याम मामले में निर्धारित मानदंडों के अनुरूप नहीं था।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्र और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने कहा, “क़ानून स्पष्ट है। जब यह लगता है न्याय के हित में अपराधी को दंडित करना जरूरी है तो अभियोजन को आदेश दिया जाना चाहिए...और प्रथम दृष्टया जानबूझकर झूठ फैलाने का मामला लगना चाहिए...और कोर्ट को लगना चाहिए कि आरोप का आधार पुख्ता है।”

कोर्ट ने अमरसंग नाथजी बनाम हार्दिक हर्षदभाई पटेल मामले का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया कि अगर कोई व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया के दौरान विरोधाभासी बयान देता है तो हमेशा ही यह आईपीसी की धारा 199 और 200 के तहत अभियोजन का हमेशा ही आधार नहीं बनता।


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