जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से कहा, एडवोकेट दीपिका राजावत को न ही धमकाया और न ही चार्ज शीट को रोकने की कोशिश की [शपथ पत्र पढ़ें]

Update: 2018-04-26 05:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन ने कहा है कि उन्होंने एडवोकेट दीपिका सिंह राजावत को धमकी नहीं दी और कठुआ बलात्कार कांड की पीड़ित परिवार की पैरवी करने से नहीं रोका है।

हलफनामे में राजावत को धमकी देने की बात से इनकार किया गया है। राजावत ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रामालिंगम सुधाकर से 9 अप्रैल 2018 को शिकायत कर कहा था कि एसोसिएशन के अध्यक्ष बीएस सलाथिया एवं अन्य अधिकारियों ने उनको धमकाया और पीड़ित के परिवार की पैरवी नहीं करने को कहा।

एसोसिएशन ने इनकार किया कि पुलिस को मजिस्ट्रेट के सामने चार्ज शीट दाखिल करने से रोका गया। कठुआ बार एसोसिएशन ने 12 अप्रैल तक कोई काम नहीं करने का प्रस्ताव पास किया था और 11 अप्रैल को कठुआ और जम्मू-कश्मीर बंद का समर्थन किया था।

अब एसोसिएशन ने कहा है कि जम्मू के लोगों ने खुद ही इस बंद का शांतिपूर्ण समर्थन किया था और कहीं भी किसी भी तरह की कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। हलफनामे में दावा किया गया है कि विरोध जम्मू में हो रहा था जबकि चार्ज शीट 100 किलोमीटर दूर दायर किया जा रहा था।

हलफनामे में मीडिया पर आरोप लगाया है कि उसने मामले को ऐसे पेश किया जैसे एसोसिएशन पुलिस को चार्ज शीट दायर करने से रोक रहा था। “...कुछ गैरजिम्मेदार न्यूज़ चैनल और समाज के एक वर्ग ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की प्रतिष्ठा को दागदार बनाने की साजिश रची थी...आरोप गलत हैं और वह इसका पूरी तरह खंडन करता है।

एसोसिएशन ने उम्मीद जताई की पीड़ित परिवार को सीबीआई की जाँच से न्याय मिलेगा। उसने कहा है कि उसकी आशंका से पीड़ित के परिवार ने भी सहमति जताई थी और इसकी शिकायत (ओडब्ल्यूपी न. 259/2018, मोहम्मद अख्तर बनाम राज्य एवं अन्य) अपनी वकील दीपिका राजावत के माध्यम से की थी हाई कोर्ट से की थी।


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