प्रो.शमनाद बशीर ने सुप्रीम कोर्ट से कहा : सीएलएटी को बार काउंसिल को सौंपना हजारों छात्रों को तवे से निकालकर आग में झोंकना होगा
बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के यह कहने पर कि वह कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी) आयोजित कर सकता है, इस मामले में याचिकाकर्ता प्रो. शमनाद बशीर ने कहा कि ऐसा करना छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करना होगा। उन्होंने कहा कि यह वैसे ही होगा जैसे किसी को तवे से निकालकर आग में झोंक दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान बीसीआई के वकील अर्धेन्दुमौली कुमार प्रसाद ने कहा कि सीएलएटी के आयोजन के लिए बीसीआई बेहतर संसथान है। उन्होंने कहा कि बीसीआई की हमेशा आलोचना की जाती है पर उसे कभी भी मौक़ा नहीं दिया गया।
प्रो. बशीर ने इसके बाद एक जवाब दाखिल किया जिसमें उन्होंने बीसीआई के इस दावे का खंडन किया कि एडवोकेट अधिनियम 1961 की धारा 7 के तहत वह देश में कानूनी शिक्षा की देखरेख करने वाली एकमात्र संस्था है। उन्होंने कहा कि धारा 7 जिसमें बीसीआई के कार्यों का उल्लेख है, उसको सिर्फ क़ानून के विश्वविद्यालयों की सलाह से कानूनी शिक्षा के बारे में कुछ मानक निर्धारित करने का अधिकार भर है।
उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ वर्षों में आयोजित अखिल भारतीय बार परीक्षा (एआईबीई) का स्तर बहुत ही खराब और गैरपेशेवराना रहा है, उसमें देरी होती रही है, यह अपारदर्शी है, कुप्रशासित है और यह अन्य बहुत गड़बड़ियों से भरा रहा है।
इसलिए उन्होंने कहा कि बीसीआई को सीएलएटी की जिम्मेदारी देना बहुत बड़ा अन्याय होगा क्योंकि सीएलएटी बहुत ही चुनौती भरा होता है और इसके लिए बहुत ही ऊंचे स्तर की योग्यता की जरूरत होती है। यह देखते हुए कि बीसीआई अमूमन कई महीनों की देरी की घोषणा नियमित रूप से करता रहता है, सीएलएटी में इस तरह की देरी छात्रों के भविष्य का बंटाधार कर देगा।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एएसजी तुषार मेहता से कहा कि वे कोर्ट को बताएं कि क्या नेशनल लॉ स्कूल्स को राष्ट्रीय महत्त्व का समझा जा सकता है और क्या उन्हें संविधान के सातवें अनुसूची के तहत केंद्रीय सूची की प्रविष्टि 63 के तहत राष्ट्रीय घोषित किया जा सकता है?
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और नागेश्वर राव की पीठ ने प्रो. शमनाद बशीर की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह पूछा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए गोपाल शंकरनारायण और सुश्री लिज़ मैथ्यू ने कोर्ट को बताया कि उनकी याचिका पर केंद्र, बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र और राजीव गाँधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ, पटियाला को नोटिस जारी किया जिस पर सीएलएटी, 2016 की परीक्षा आयोजित करने का जिम्मा था।
कोर्ट का ध्यान इस और खींचा गया कि हर साल सीएलएटी का आयोजन करने वाले नेशनल लॉ स्कूलों की तरह ही अन्य एनएलयू के रेस्पोंस की भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। इससे सहमत होने के बाद कोर्ट ने सभी एनएलयू को नोटिस जारी किया।
वर्ष 2015 में दायर याचिका में कहा गया कि सीएलएटी को सांस्थानिक रूप दिया जाना चाहिए। परीक्षा आयोजन में होने वाली कई तरह की गड़बड़ी के अलावा याचिका में यह भी कहा गया था कि यह पीए इनामदार एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्यमामले में कोर्ट के फैसले का उल्लंघन हो रहा है। इस फैसले में कोर्ट ने अनिवासी भारतीयों के लिए कोटा 15% निर्धारित किया था।
प्रो. बशीर की याचिका में कहा गया कि सभी एनएलयू ने एनआरआई के संबंध में इस फैसले का उल्लंघन किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि इन संस्थानों में धनी और पहुँच वाले लोगों को जिसका कोई भी दूर का रिश्तेदार एनआरआई है, सीएलएटी में बिना अच्छा नंबर लाए भी प्रवेश मिल जाता है। इसलिए उन्होंने याचिका में विशेषज्ञों की एक समिति बनाने की मांग की है जो कि सीएलएटी की समीक्षा करेगा और उसमें सुधार लाने के रास्ते बताएगा।