ट्रांसफर याचिका : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किसी एक पक्ष की सुविधा अभियोजन, अन्य आरोपियों, गवाहियों और समाज के हितों की अनदेखी न करे [आदेश पढ़ें]

Update: 2018-04-12 15:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामलों के ट्रांसफर की अर्जी के बारे में महत्त्वपूर्ण बातें कही है। कोर्ट ने कहा है कि किसी पक्ष को सुविधा देने का मतलब यह नहीं है कि दूसरे पक्ष की सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा जाए। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की स्थिति में अभियोजन, दूसरे आरोपी, गवाहों और समाज के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए।

मामले को ट्रांसफर करने की एक अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति एके गोएल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हो सकता है कि कोई पक्ष अपनी सुविधा के लिए मामले को ट्रांसफर कराना चाहता हो पर वह इससे जुड़े अन्य पक्षों को होने वाली असुविधाओं की अनदेखी नहीं कर सकता है, जैसे कि अगर मूल स्थान पर ही गवाह उपलब्ध हो सकते हैं तो इससे नए स्थान पर मामले की सुनवाई असंभव हो जाएगी।

एक महिला एडवोकेट जो कि बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करती है, ने दिल्ली और उत्तर प्रदेश में दर्ज एफआईआर को ट्रांसफर करने की अर्जी दी थी। उसने यह दलील दी थी कि उसको आरोपी की ओर से धमकियां मिल रही हैं और इसलिए दिल्ली जाकर इस मामले की सुनवाई में शामिल होना उसके लिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि पेशेगत व्यस्तता के कारण उसको मुंबई में रहना होता है और दिल्ली जाने से उसको इस दृष्टि से घाटा उठाना पड़ता है।

पीठ ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता को दिल्ली आकर मामले की सुनवाई में भाग लेने में अपनी सुरक्षा पर कोई ख़तरा नजर आ रहा है तो क़ानून के तहत इसको दूर करने के उपाय हैं और अगर जांच को लेकर कोई शिकायत है तो उनको इसके लिए सीआरपीसी के तहत अपील दायर करनी चाहिए।

पीठ ने कहा  कि एक एफआईआर की चार्ज शीट में कहा गया है कि 40 गवाहों में से सिर्फ याचिकाकर्ता ही मुंबई में है, दो गाज़ियाबाद का है जबकि एक नोएडा का है। इसलिए दोनों मामलों को मुंबई ट्रांसफर करने की जरूरत नहीं है।


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