न्यायिक कार्य से दूर रहने का आह्वान करना एडवोकेट के मौलिक अधिकार का हनन है : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने वकीलों से काम पर लौटने को कहा [आर्डर पढ़े]

Update: 2018-04-11 16:35 GMT

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी को भी न्यायिक कार्य से दूर रहने का आह्वान करना उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि राज्य बार काउंसिल का वकीलों को सप्ताह भर कार्य नहीं करने और का आह्वान करने का निर्णय गैर कानूनी और असंवैधानिक है।

मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता के नेतृत्व वाली पीठ ने राज्य के वकीलों से तत्काल काम शुरू करने को कहा है ताकि जरूरतमंदों, गरीबों, विचाराधीन कैदियों और अन्य लोग जो न्याय पाना चाहते हैं उनको कोई नुकसान नहीं हो।

इस बारे में एक वकील प्रवीण पांडेय ने जनहित याचिका दायर की है जिसमें राज्य बार काउंसिल ने वकीलों को 9 से 14 अप्रैल तक कोर्ट के काम से दूर रहने का आह्वान किया है। यह हड़ताल हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति, एडवोकेट संरक्षण अधिनियम और वकीलों के लिए हाई कोर्ट परिसर में बैठने की व्यवस्था की मांग को लेकर है।

शरू में बार काउंसिल ने कहा था कि कार्य से दूर रहने का यह आह्वान सिर्फ वकीलों की स्वेच्छा पर था। कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि इस मामले की सुनवाई में बार काउंसिल की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं आया।

पीठ ने कहा कि अधिनियम का कोई भी प्रावधान किसी वैधानिक निकाय के सदय को न्यायिक कार्य से दूर रहने का आह्वान नहीं कर सकता है। पीठ ने कहा, “अगर कोई वकील मामले की सुनवाई के समय मौजूद नहीं रहता है तो अपने मुवक्किल के हित की अनदेखी करने के आरोप में उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई तक की जा सकती है।”

इस बारे में पीठ ने अरुनावा घोष मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया कि एडवोकेट अधिनियम के तहत राज्य बार काउंसिल पर कोई न्यायिक अधिकार नहीं देता कि वह किसी एडवोकेट का अधिकार छीन ले।


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