पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक बार फिर रेप केस में आरोपी और पीड़िता के शादी करने पर FIR रद्द की [आर्डर पढ़े]
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने बलात्कार की एफआईआर को एक बार फिर इस आधार पर रद्द कर दिया है कि पीड़ित और आरोपी ने शादी कर ली है और वे एक साथ खुशी से रह रहे हैं।
न्यायमूर्ति जयश्री ठाकुर ने समझौते की चर्चा करते हुए कहा : "समझौते की शर्तों के अनुसार पक्षकारों ने एक दूसरे के साथ शादी की है और वे अब खुशी से पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं, इसलिए उनका भला होगा अगर ये FIR रद्द की जाती है।”
हालांकि शिकायतकर्ता ने कहा कि वह लड़के के साथ प्यार में थी और उन्होंने एक दूसरे से शादी करने का वादा किया था।उसने शिकायत में आरोप लगाया था कि आरोपी ने अपने घर पर उसे बुलाया जहां वह अकेला था और जबरन उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। उसने यह भी आरोप लगाया था कि उसे वैष्णों देवी मंदिर ले जाया गया जहां उसकी अश्लील फिल्म बनाई और इंटरनेट पर उसे अपलोड करने की धमकी दी गई।
बलात्कार की FIR को रद्द करने का यह आदेश मध्य प्रदेश राज्य बनाम मदन लाल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के खिलाफ है जिसमे यह फैसला हुआ था कि बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के मामले में किसी भी परिस्थिति में समझौते की अवधारणा के बारे में वास्तव में सोचा भी नहीं जा सकता।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा इसी तरह के आदेश
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से पहले पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा था कि जोड़ों के बीच प्रेम प्रसंग के निर्वाह के दौरान दर्ज की गई बलात्कार की FIR को समझौतेऔर शादी के आधार पर खारिज कर दिया जा सकता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के मदन लाल मामले में आदेश पारित करने के बाद उच्च न्यायालय ने पांच व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376/506/120 बी के तहत प्राथमिकी को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उनके बीच समझौता हो गया और एक अभियुक्त ने पीड़ित से शादी की है।
अन्य उच्च न्यायालयों द्वारा समान आदेश
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 'बलात्कार के आरोपी' के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को भी खारिज कर दिया था, जिसने बाद में पीड़ित से शादी कर ली थी और कहा था कि इस मामले में सजा की संभावना कम है क्योंकि पक्षकारों ने समझौता कर शादी कर ली है।
लाइव लॉ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को भी प्रकाशित किया था जिसमें अदालत ने बलात्कार के दोषी की सजा को पहले ही खत्म कर दिया क्योंकि उसने पीड़ित से शादी की थी।
मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश पर, जिसे बाद में वापस लिया गया (सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर), बलात्कार के एक मामले में मध्यस्थता का सुझाव दिया गया, देश भर में भारी नाराजगी हुई थी।