हिंदू से मुसलमान बना कोई व्यक्ति अपने पिता की संपत्ति प्राप्त करने का अधिकारी : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई हिंदू अपना धर्म बदलता है तो वह अपने पिता की संपत्ति को प्राप्त करने का हकदार है अगर पिता कोई वसीयत बनाए ही मर जाता है।
न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने कहा कि उत्तराधिकार का अधिकार कोई च्वाइस नहीं है बल्कि यह आजन्म है, कुछ मामलों में यह शादी के कारण है और किसी विशेष धर्म को छोड़ना या स्वीकार करना किसी की इच्छा पर निर्भर है और जन्म के कारण बनने वाले ये संबंध इस वजह से समाप्त नहीं हो जाते।
अदालत एक मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें कहा गया था कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 2(1)(a)(c) उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होता जो मुसलमान, इसाई, पारसी, या यहूदी हैं और चूंकि प्रतिवादी अब हिंदू से मुसलमान बन गई है, सो वह अपने पिता की संपत्ति प्राप्त नहीं कर सकती।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 26 के बारे में पीठ ने कहा, “विधायिका संपत्ति प्राप्त करने के अयोग्यों की सूची में धर्म परिवर्तन करने वालों को नहीं शामिल किया है। धारा 26 एक विशेष धारा है जो अयोग्य निर्धारित करने की चर्चा करता है जहाँ विधायिका यह कह सकती थी कि “धर्म परिवर्तन करने वाले” के साथ साथ “धर्म परिवर्तन करने वाले वंशज” भी इसमें शामिल हैं, हालांकि धर्म परिवर्तन करने वाले को भी धारा 26 में शामिल नहीं किया गया है और इसलिए वे योग्य नहीं हैं।”
कोर्ट ने कहा कि धारा 26 के तहत, यद्यपि धर्म परिवर्तन करने वालों के बच्चे अपने माँ-बाप के धर्म परिवर्तन कर लेने के कारण जन्मजात हिंदू नहीं हैं और इसलिए वे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नहीं आते पर उनके माता-पिता जो कि जन्म से हिंदू हैं, अपने पिता से संपत्ति प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
कोर्ट ने आगे कहा, “यह धर्म परिवर्तन या तो बलात हो सकता है या फिर स्वेच्छा से। कोई व्यक्ति क्यों अपना धर्म परिवर्तन करता है और कोई अन्य धर्म स्वीकार करता है? विश्व में अधिकाँश लोगों के लिए धर्म जीवन जीने का तरीका है जो कि एक तरह की जीवन शैली, विश्वास और संस्कृति को विनियमित करता है। कोई व्यक्ति किसी धर्म को अपनाकर एक ख़ास जीवन और विश्वास को अपनाने की सोचता है, ब्रह्मांड के अस्तित्व और वह कौन है जैसे प्रश्नों का उत्तर उसको मिल सकता है। वह सोचता है कि कोई विशेष धर्म मानना सही रास्ता है जिससे वह एक ख़ास तरह की आध्यात्मिक यात्रा पर जा सकता है। इसीलिए संविधान ने धर्म को मानने की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार माना है और हमारे धर्मनिरपेक्ष देश में कोई भी किसी भी धर्म को मानने के लिए स्वतंत्र है। इसलिए, कोई हिंदू अगर किसी और धर्म को स्वीकार करता है तो अधिनियम की धारा 26 के तहत वह संपत्ति प्राप्त करने का अधिकारी है”।