निर्माण मजदूर भी देश निर्माण में अपने तरीके से मदद करते हैं : सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए महत्त्वपूर्ण निर्देश [निर्णय पढ़े]

Update: 2018-03-19 14:07 GMT

सत्ता में बैठे लोगों को निर्माण कामगारों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं है और वे उनके लाभ के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं। स्थिति इतनी दुखद है कि शेक्सपियर की दुखांत गाथा भी इसके आगे शर्मा जाए, कोर्ट ने कहा।

देश के लाखों निर्माण कामगारों को “सांकेतिक न्याय” देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देश दिए हैं जो कि बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रेग्यूलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशंस ऑफ़ सर्विस) एक्ट, 1996 (बीओसीडब्ल्यू अधिनिम) और अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर सेस एक्ट, 1996 (द सेस एक्ट) को लागू करने को लेकर हैं।

कोर्ट ने शुरू में 2006 में नेशनल कैंपेन कमिटी ने निर्माण मजदूरों को लेकर एक केंद्रीय क़ानून बनाने को लेकर दायर किए गए एक रिट पर सुनवाई करते हुए कहा, “यह सांकेतिक न्याय है – असंगठित क्षेत्र के लाखों मजदूरों को देने के लिए इससे ज्यादा कुछ नहीं है – न सामाजिक न्याय और न आर्थिक न्याय। इसका कारण बहुत साधारण है। कोई राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश संसद द्वारा पारित उन दो कानूनों बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रेग्यूलेशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशंस ऑफ़ सर्विस) एक्ट, 1996 (बीओसीडब्ल्यू अधिनिम) और अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर सेस एक्ट, 1996 (द सेस एक्ट) पर अमल करते हुए उन्हें पूरी तरह लागू करने को इच्छुक नहीं हैं”।

अपना असंतोष जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि समय समय पर शीर्ष अदालत ने इन दो कानूनों को लागू करने को लेकर जो निर्देश जारी किए हैं उनकी इन्होंने बिना किसी भय के उपेक्षा की है।

पीठ ने कहा, “हमें बताया गया है कि सेस अधिनियम के तहत 37,400 करोड़ रुपए इकट्ठा किए गए हैं पर अभी तक सिर्फ 9500 करोड़ रुपए ही प्रयोग में लाए गए हैं। शेष 28,000 करोड़ रुपए का क्या हो रहा है? क्यों देश भर के निर्माण मजदूरों को इस भारी राशि के लाभ से वंचित किया जा रहा है? ये कुछ सवाल हैं जो इस याचिका में उठाए गए हैं – क्या इसके जवाब हवा में बह गए हैं?”

पीठ ने कहा कि इस बारे में केंद्र सरकार को पहले से ही संग्रहीत इस सेस के लाभदायक प्रयोग के बारे में कोई निर्णय लेना ही होगा ताकि कल्याणकारी बोर्ड इस भारी राशि का लाभ न उठाएं और जिसके लाभ के लिए यह है वे घाटे में न रहें।

कोर्ट ने इस बात पर भी गौर किया कि किसी भी राज्य की परामर्श समिति ने पिछले 12 महीनों में कोई बैठक नहीं की। पीठ ने कहा, “इससे यह पूरी तरह स्पष्ट है कि सत्ता में बैठे लोगों को इन मजदूरों की कोई चिंता नहीं है और वे इनकी भलाई के लिए कुछ भी नहीं करना चाहते हैं। यह बहुत ही दुखद है शायद इतनी दुखद कि शेक्सपीयर की दुःख भरी कहानियाँ भी शर्मा जाए”।

कोर्ट ने जो निर्देश दिए हैं वे इस तरह से हैं -




  •  पंजीकरण व्यवस्था की स्थापना की जाए और उसे मजबूत किया जाए और यह व्यवस्था और मजदूर दोनों के पंजीकरण के लिए हो।

  • सेस वसूली मशीनरी की स्थापना हो और उसको मजबूत बनाया जाए।

  •  एक मिश्रित मॉडल बनाया जाए और इसके लिए जमीनी काम करने वाले एनजीओ और अन्य साझीदारों के साथ मशविरा किया जाए। श्रम और रोजगार मंत्रालय इस कार्य के जरूरी होने के बावजूद ज़रा धीमे चले और एक मॉडल योजना तैयार करे जो कि व्यापक हो और जिसे लागू करना आसान हो और इसमें बहुत ज्यादा कागजी कार्रवाई न करनी पड़े।

  •  बीओसीडब्ल्यू पर अमल का सोशल ऑडिट हो ताकि भविष्य में इसमें और सुधार लाया जा सके।


आम निर्देश




  • हर राज्य और यूटीए एक परामर्श समिति बनाएंगे और इसकी नियमति बैठक आयोजित करेंगे।

  • हर राज्य और यूटीए बीओसीडब्ल्यू अधिनियम की धारा 62 के तहत एक विशेषज्ञ समिति गठित करेगा।

  • हर राय और यूटीए निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए एक कल्याण कोष गठित करेगा और इस मद की राशि के प्रयोग के लिए नियमों का निर्धारण करेगा।

  • सभी निर्माण मजदूरों को पहचान पत्र देना जरूरी होगा और उनको पंजीकृत कराना होगा। श्रम और रोजगार मंत्रालय ने उनको यूनिवर्सल एकसेस नंबर उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया है।

  • श्रम और रोजगार मंत्रालय निर्माण मजदूरों को मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948, कर्मचारी भविष्य निधि और मिस्लेनियस प्रोविजन एक्ट, 1952 और महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 का लाभ दिलाने के लिए सक्रिय होकर विचार करेगा।

  • श्रम और रोजगार मंत्रालय यह निर्णय भी करेगा कि भारत सरकार के अधीन रेलवे, रक्षा और अन्य विभागों की परियोजनाओं में काम करने वाले मजदूरों को भी बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के तहत लाया जाए या नहीं।

  • निगरानी समिति बीओसीडब्ल्यू अधिनियम और सेस अधिनियम और इस अदालत द्वारा दिए गए निर्देश का पूरी तरह पालन करेगा। उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह अब ज्यादा बैठकें करेगा और कमसे तीन महीने में एक बार तो जरूर बैठेगा।


अदालत इस मामले की अगली सुनवाई अब 1 मई को करेगी और इस बात की जांच करेगी कि संबंधित अथॉरिटीज ने निर्देशों का पालन करने के लिए समय सीमा निर्धारित की है या नहीं।


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