केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, हमारी अनुमति के बिना मेजर आदित्य के खिलाफ एफआईआर वैध नहीं [आवेदन पढ़े]

Update: 2018-03-17 11:09 GMT

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर कहा है कि उसकी अनुमति के बिना शोपियां में 27 जनवरी को पत्थरबाजी की घटना में दो लोगों के मारे जाने के मामले में जम्मू-कश्मीर द्वारा मेजर आदित्य कुमार के खिलाफ दायर एफआईआर के पहले भारत संध की अनुमति नहीं ली गई थी।

“भारत संघ ने इस मामले पर व्यापक रूप से गौर किया है और उसका मानना है कि केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई की अनुमति नहीं है। इसके परिणामस्वरूप शोपियां के थाने में रणबीर दंड संहिता की धारा 336, 307, 302 के तहत दर्ज एफआईआर अवैध है क्योंकि इसके लिए पुलिस ने पूर्व अनुमति नहीं ली।

आवेदन में कहा गया है, “इस संबंध में, कोर्ट का ध्यान आर्म्ड फोर्सेज (जम्मू-कश्मीर) स्पेशल पावर्स एक्ट, 1990 की धारा 7 के प्रावधानों की ओर आकृष्ट किया जाता है जिसमें ऐसे लोगों के संरक्षण की बात कही गई है जो सद्भावनापूर्ण कार्य में लगे हैं। इसके अनुसार, केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना इस तरह के व्यक्ति के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ मेजर आदित्य के पिता लेफ्टिनेंट कर्नल करमवीर सिंह द्वारा इस एफआईआर के खिलाफ दायर याचिका पर 24 अप्रैल को सुनवाई करेगी।

केंद्र ने जम्मू-कश्मीर सरकार के गृह विभाग की एक पूर्व अधिसूचना का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि राज्य में स्थिति ऐसी है कि नागरिक शक्तियों को सैन्य बलों की मदद जरूरी हो गया है ताकि वहाँ आम नागरिकों के खिलाफ आतंक की घटनाओं को रोका जा सके।

केंद्र ने यह भी कहा कि आंध्र प्रदेश के पांच जजों की एक पीठ ने कहा था कि अगर आधिकारिक कर्तव्यों को अंजाम देते हुए या स्वरक्षा में किसी पुलिस अधिकारी द्वारा गलती से किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो ऐसा जिस परिस्थिति में होता है उसको लिखा जाना जरूरी है पर मेजर आदित्य के मामले में ऐसा नहीं किया गया।

6 मार्च को कर्मवीर सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि जम्मू-कश्मीर पुलिस किसी सैन्य अधकारी के साथ एक सामान्य अपराधी की तरह कैसे व्यवहार कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया कहा कि महबूबा मुफ़्ती की सरकार का किसी ऐसे सैन्य अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करना उचित नहीं है जो अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर रहा था या उसने स्वरक्षा में ऐसा किया हो।

पीठ ने 23 फरवरी को निर्देश दिया था कि मेजर आदित्य के खिलाफ इस मामले के सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने तक गिरफ्तारी या हिरासत में लेने जैसी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

इसके बाद जम्मू–कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मेजर आदित्य का नाम एफआईआर में नहीं है।

राज्य की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया कि एफआईआर में सैन्य अधिकारी का नाम नहीं है और पुलिस ने गोलीबारी की घटना की जांच के लिए एफआईआर दर्ज किया है। राज्य सरकार ने कहा कि इसके बाद यह याचिका अर्थहीन हो जाती है और इसलिए इसे ख़ारिज कर देनी चाहिए।

पर पीठ ने कहा कि चूंकि एफआईआर में जो बात कही गई है उसमें मेजर का नाम आया है इसलिए उनको किसी भी समय इसमें शामिल किया जा सकता है।
एटोर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, “सैकड़ों सैन्यकर्मी हमारी रक्षा करते हुए मारे जाते हैं, राज्य को इस तरह की बहस नहीं करनी चाहिए।”


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