“हम मामले में दखल नहीं देंगे, सरकार के पास जा सकते हैं”: सुप्रीम कोर्ट ने ‘दो बच्चों’ की नाति की याचिका पर दखल देने से इनकार किया

Update: 2018-03-09 13:54 GMT

देश की आबादी में "अत्यधिक बढ़ोतरी" को ध्यान में रखते हुए एक मजबूत "जनसंख्या  नियंत्रण कानून" तैयार करने और कार्यान्वित करने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया है।

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि ये कोर्ट का काम नहीं है। ये काम संसद का है। अगर याचिकाकर्ता चाहे तो इस मुद्दे को लेकर सरकार के पास जा सकता है।पीठ ने ये भी कहा कि संविधान को लागू करना संसद का काम है और कोर्ट की जिम्मेदारी संविधान के सरंक्षण की है।

दरअसल वकील पृथ्वी राज चौहान द्वारा दायर की गई याचिका में  तर्क दिया गया था कि जनसंख्या विस्फोट, कुछ समय के बाद, "गृहयुद्ध की स्थिति" का कारण बन सकता है और  उसे रोकना होगा।

 याचिकाकर्ता ने उत्तरदाताओं के लिए एक दिशा-निर्देश मांगा था ताकि परिवार में दो बच्चों की नीति का पालन करने वाले को प्रोत्साहित करने और / या इनाम मिल सके और इसके अनुपालन ना करने वालों को उचित रूप से सज़ा दे।

 याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 1951 की जनगणना के दौरान भारत की आबादी 361 मिलियन थी, लेकिन 2011 की जनगणना के दौरान यह 1.21 बिलियन तक पहुंच गई थी। फिर वे कहते हैं कि यह संख्या 2022 तक 1.5 अरब के पार हो जाने की संभावना है, जैसा कि जनसंख्या वृद्धि से संबंधित आंकड़े हैं।

 "... यदि मौजूदा विकास दर को अनियंत्रित करने की इजाजत दी जाती है तो इस देश की आबादी 2025 में 150 करोड़  होगी।

1951 की जनगणना में यह 361 मिलियन थी। 1967 में यह 600 मिलियन अंक पार कर गया और 2000 की शुरुआत में 1000 मिलियन। इसका मतलब यह है कि 1951-76 के बीच 25 वर्षों में 24 लाख की वृद्धि हुई थी, लेकिन 1976 से 2000 के बीच 24 वर्षों में 400 मिलियन की वृद्धि हुई है। इस प्रवृत्ति के साथ 2025 तक 600 मिलियन की वृद्धि होगी।” उन्होंने आगे कहा था।

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