जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं विचाराधीन कैदी; दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद जिला और सत्र न्यायालय जोखिम का आकलन करने में विफल रहे [आर्डर पढ़े]
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक पूर्व के आदेश में जिला और सत्र न्यायाधीशों को ऐसे मामलों में “जोखिम के आकलन” का आदेश दिया था जिसमें जमानत मिलने के बावजूद विचाराधीन कैदियों को जेल से नहीं छोड़ा गया। पर ये अदालतें इस कार्य को पूरा करने में विफल रही हैं.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि उसके पूर्व में दिए आदेश के बावजूद उसे यह नहीं बताया गया है कि जिन कैदियों पर जमानत की शर्तें लगाई गई थी उसको पूरा नहीं कर पाने वालों को रिहा करने के लिए कोई कदम उठाया गया है या नहीं।
इसके बाद पीठ ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह इस आदेश को सख्त आदेश के साथ जिला और सत्र न्यायाधीशों को जारी करे कि वे इस आदेश का पालन करें। कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों को यह आदेश दिया कि तिहार जेल के जिला न्यायाधीश के हस्ताक्षर के साथ अदालत से जुड़े मामलों के मुख्यालय और जेल महानिदेशक को समेकित रिपोर्ट भेजने का निर्देश भी दिया है। इस मामले पर अगली सुनवाई अब 8 मार्च को होगी।
कोर्ट एडवोकेट अजय वर्मा की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें आरोप लगाया गया है कि जमानत का आदेश मिलने के बावजूद कई विचाराधीन कैदी जेलों में ही हैं। उन्होंने इसके लिए कैदियों के रिश्तेदारों की गरीबी, वित्तीय अक्षमता को जिम्मेदार बताया है जो जमानत की राशि भरने की स्थिति में नहीं होते।
कोर्ट ने 15 दिसंबर को जारी अपने आदेश में पूर्व में हुए इस तरह के अन्य मामलों की जांच की थी और जिलावार विचाराधीन कैदियों की सूची पर गौर किया था जिनको जमानत मिलने के बावजूद जेल से रिहा नहीं किया गया था। यह सूची राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के स्थाई वकील (आपराधिक) राहुल मेहरा ने सौंपी थी।
इसके बाद कोर्ट ने राय जाहिर की थी कि विचाराधीन कैदियों के अधिकारों को लेकर विभिन्न अदालतों के आदेशों का पालन नहीं हो रहा है। कोर्ट ने कहा, “यह सही में दुर्भाग्यपूर्ण है कि जजों द्वारा जेलों का निरीक्षण; डीएसएलएसए और डीएचसीएलएससी की और से मिलने वाले कानूनी मदद के अलावा पैरा लीगल स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं के बंदियों और जेल अथॉरिटी के साथ बातचीत करने जैसी इतनी व्यापक व्यवस्था और जमानत की स्थितियों पर व्यापक दिशानिर्देशों के बावजूद, स्थितियों में बहुत कम बदलाव आया है। यहाँ तक कि इस वर्तमान हस्तक्षेप की भी जरूरत आ पड़ी। स्पष्ट है, सुप्रीम कोर्ट और इस कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं हो रहा है।”
जोखिम का आकलन
इसके बाद कोर्ट ने इस तरहके मामलों के जोखिम के आकलन की जरूरत बताई। कोर्ट ने कहा, “जहाँ तक जमानत पाए हुए विचाराधीन कैदियों द्वारा जमानत की शर्तों को पूरा नहीं कर पाने की बात है, हम यह नहीं समझ रहे हैं कि सुनवाई अदालत इस तरह के लोगों के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर क्यों न मामले की जांच करती है कि इसके कारण क्या हैं। सुनवाई अदालत को न केवल संवेदनशील होना चाहिए बल्कि सतर्क भी कि जहाँ जमानत के स्पष्ट आदेश दिए गए हैं, वहाँ उनका पालन हो रहा है कि नहीं। अगर कोई कैदी जमानत मिलने के बाद भी जेल से छूट पाने में असमर्थ रहता है, तो हमारे विचार से यह सुनवाई अदालत की न्यायिक ड्यूटी हो जाती है कि वह इसके कारणों की समीक्षा करे।
कोर्ट ने विशेषकर यह आदेश दिया था कि जमानत के प्रत्येक आदेश को स्पष्ट रूप से मार्क किया जाना चाहिए और यह प्रत्येक जज का उत्तरदायित्व होगा कि वह यह देखे कि फैसले को लागू किया गया या नहीं।
कोर्ट का निर्देश
कोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित निर्देश दिए :
(i) सरकार के वकील राहुल मेहरा ने जो सूची सौंपी है उसकी प्रति सभी जिला जजों को भेजी जाए जो इसे सुनवाई अदालत के संज्ञान में लाएंगे।
(ii) जिला जज राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली द्वारा सौंपी गई सूची की जांच करेंगें और लंबित मामलों की समीक्षा करेंगे ताकि यह पता किया जा सके कि कोई अन्य विचाराधीन कैदी है जो जमानत मिलने के बाद भी जेल में है।
(iii) सुनवाई अदालत सूची में शामिल लोगों के संदर्भ में जोखिमों का आकलन करेगा और जिला जज यह रिपोर्ट चार सप्ताह के भीतर पेश करेगा।
(iv) इस आदेश की एक प्रति अभियोजन निदेशालय, तीस हजारी कोर्ट, दिल्ली को भेजी जाएगी और इस मुद्दे पर एक कार्यक्रम चालाया जाएगा।
(v) आदेश की प्रति तिहार केंद्रीय जेल के महानिदेशक, कारा को भी भेजी जाएगी।
(vi) जेल अथॉरिटी को आदेश दिया जाता है कि अगर उन्हें किसी ऐसे कैदी के बारे में पता चलता है जिसे जमानत मिली है पर उसे जेल से नहीं छोड़ा गया है, तो वह इस बात की जानकारी शीघ्र सुनवाई अदालत और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को देगा।
(vii) जेल महानिदेशक ऐसे सॉफ्टवेर भी शामिल कर सकता है जो जमानत पाए कैदी के नहीं छोड़े जाने के बारे में बता सके।
(viii) दिल्ली के सभी जिला जजों के संज्ञान में यह आदेश लाया जाए भले ही वह दीवानी या आपराधिक मामले से ही जुड़ा क्यों न हो।
(ix) इस आदेश की प्रति दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और दिल्ली हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति के सचिव को भेजा जाए ताकि विधिक सहायता से जुड़े कानूनी मदद देने वाले सभी वकीलों को इसके बारे में बताया जा सके।
(x) इस आदेश की प्रति दिल्ली न्यायिक अकादमी को भी भेजा जाए ताकि जिला न्यायालय में इस बारे में कार्यक्रम आयोजित किया जा सके।