बॉम्बे हाई कोर्ट ने जज एसके शिंदे के खिलाफ मनगढ़ंत आरोपों वाले पीआईएल दायर करने के लिए एडवोकेट पर लगाया एक लाख का जुर्माना [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-02-21 09:04 GMT

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एडवोकेट उल्हास नाइक द्वारा न्यायमूर्ति एसके शिंदे को प्रोमोशन करने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया और मनगढ़ंत आरोपों के साथ यह पीआईएल दाखिल करने के लिए उनको एक लाख का जुर्माना भरने को कहा।

न्यायमूर्ति आरएम बोर्डे और न्यायमूर्ति आरजी केतकर की पीठ ने याचिका पर गौर करते हुए कहा कि एडवोकेट ने जानबूझकर यह आरोप लगाया है कि न्यायमूर्ति शिंदे हाई कोर्ट का जज बनने के लायक नहीं हैं क्योंकि जिला जज के रूप में कार्य करते हुए उनको आवश्यक रूप से रिटायर कर दिया गया था”

कोर्ट ने मूल रिकार्ड्स की जांच की और कहा कि न्यायमूर्ति शिंदे ने बॉम्बे के सिटी सिविल कोर्ट और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के पद से अपना इस्तीफा बॉम्बे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को 1 अगस्त 2006 को भेज दिया था।

पीआईएल की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि कैसे याचिकाकर्ता ने नोटिस ऑफ़ मोशन दाखिल किया और ताजा पीआईएल दायर करने की अनुमति चाही। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे वास्तव में पता नहीं है पर उसका मानना है कि “आम राय” यह है कि विभागीय जांच को देखते हुए ऐसा लगता है कि शिंदे को  हमेशा के लिए रिटायर करा दिया गया है या फिर उन्होंने स्वैच्छिक अवकाश ले लिया है या फिर सेवा से त्यागपत्र दे दिया है।”

जहाँ तक शिंदे की नुयुक्ति की बात है, एएसजी अनिल सिंह ने कोर्ट को बताया कि नियुक्ति के लिए अधिसूचना जारी करने से पहले मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर का बहुत ही ईमानदारी से पालन हुआ। उन्होंने यह भी कहा : “न्यायमूर्ति शिंदे आपराधिक क़ानून के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हैं और बार में उनकी काफी इज्जत है”।

अंततः, कोर्ट ने इस याचिका की प्रकृति की भर्त्सना की और यह भी कहा कि कैसे एडवोकेट इस “दुर्भावनापूर्ण पीआईएल” से लोकप्रियता पाने में सफल रहा है और इसे  livelaw.in  पर प्रकाशित किया गया। इसके बाद इस याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने एडवोकेट पर 1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।


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