आधार पर छठे दिन की सुनवाई : आधार की वजह से बचत का केंद्र का दावा या तो गलत या बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया
आधार पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के छठे दिन याचिकाकर्ताओं ने कहा कि केंद्र और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने अपने हलफनामे में जो दावे किए हैं वे गलत हैं।
पहला तो याचिकाकर्ताओं ने इस दावे से इनकार किया कि “लाखों भारतीयों के पास स्वीकार योग्य पहचान का कोई तरीका उपलब्ध नहीं था और इससे उनका अहित होता था क्योंकि वे अपना कोई भी पहचान नहीं दिखा पाते थे।” उन्होंने कहा कि देश में ऐसे लोगों का प्रतिशत महज 0.1% है जिनके पास इस तरह का कोई पहचान का सबूत नहीं है। यह उन्हीं लोगों का प्रतिशत है जिन्हें “परिचयकर्ता” प्रणाली के माध्यम से पंजीकरण कराना पड़ता था जिसमें कोई तीसरा व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति का परिचय पेश करता है जिसके पास अपना कोई पहचानपत्र या आवास का प्रूफ नहीं होता।
इसलिए उन्होंने कहा, “लाखों लोगों के बिना किसी औपचारिक पहचानपत्र के होने के दावे के विपरीत, इसका प्रतिशत 0.1% से भी कम है। यह इस तरह की विशाल, आक्रमणकारी योजना को शुरू करने का कारण नहीं हो सकता जो कि निजता को नष्ट कर रहा है।”
इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने इस दावे को भी झुठलाया कि इस योजना की वजह से “कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को समाप्त कर भारी राशि की बचत हुई है”। इन लोगों ने विश्व बैंक के इस दावे को भी अपना निशाना बनाया कि इस योजना की वजह से हर साल 11 अरब डॉलर की राशि की बचत होने की संभावना है।
विश्व बैंक के दावे को उन्होंने इसकी रिपोर्ट में शामिल पेपर को उद्धृत करते हुए झुठलाया “विश्व बैंक का रिपोर्ट...अपने दावे के स्रोत के रूप में पाद टिप्पणी (फुटनोट) में श्वेता बनर्जी की 2015 की रिपोर्ट का जिक्र किया है जिसका नाम है “फ्रॉम कैश टू डिजिटल ट्रांसफर इन इंडिया : द स्टोरी सो फार”। (विश्व बैंक की रिपोर्ट डॉ. कल्याणी मेनन सेन जो कि दूसरी याचिकाकर्ता हैं, द्वारा दायर अतिरिक्त हलफनामे के पृष्ठ संख्या 563 पर है जो उन्होंने 5 जनवरी 2018 को दायर किया (रिट याचिका नंबर 342/2017)।
फुटनोट में जिस आलेख का जिक्र किया गया है उसमें श्वेता ने इस तरह का कोई दावा नहीं किया है। उन्होंने लिखा है कि 70,000 करोड़ रुपए (लगभग 11.3 अरब डॉलर) की राशि लोगों में बांटी गई है जिसमें एमएनआरईजीए, राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा पेंशन, जननी सुरक्षा योजना, उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति और एलपीजी की राशि शामिल है। इन पांच योजनाओं का जिक्र करते हुए श्वेता बनर्जी लिखती हैं :
“इन हस्तांतरणों की कुल राशि अनुमानतः 70,000 करोड़ ( 11.3 अरब अमरीकी डॉलर प्रति वर्ष) है”।
इस तरह विश्व बैंक के दावे का कोई आधार नहीं है।
इसके बाद, एमजीएनआरईजीएस के तहत केंद्र का भारी राशि बचाने का दावा भी बढ़ाचढ़ा कर किया गया है। इन लोगों ने दावा किया कि आधार नंबर को एमजीएनआरईजीएस के साथ लिंक कर देने पर आधार जॉब कार्ड में शामिल सिर्फ फर्जी नामों की पहचान हो सकेगी। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने कहा, “उपलब्ध सबूत यह दर्शाते हैं कि 05.03.2015 तक (2014-15 की लगभग समाप्ति तक) आधार से इसको लिंक करने की वजह से सिर्फ 63,943 फर्जी कार्ड की पहचान हो पाई है और इनमें से भी अधिकाँश (अगर सब नहीं तो)एक ही राज्य – त्रिपुरा से हैं। इस अवधि में अधिकतम बचत 127.88 करोड़ रुपए होती है (100 दिन x 200 प्रतिदिन x 63943 रद्द हुए कार्ड)। इसमें 3000 करोड़ रुपए की जिस बड़ी राशि की बचत का दावा किया गया है उसकी की तुलना में यह राशि बहुत ही छोटी है।”
इसी तरह, 2014-15 में 14,672 करोड़ रुपए की बचत का जो श्रेय आधार को दिया गया है, उसका आधार सीएजी की रिपोर्ट है जिसमें कहा गया है कि इन बचतों का श्रेय सरकार की योजनाओं को नहीं दिया जा सकता क्योंकि इनमें फर्जी नामों को पहले ही निकाला जा चुका है।