सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह जरूरी है कि बीमा कंपनी प्रीमियम लेने के समय पॉलिसी धारकों को ठीक तरह से सलाह दे [निर्णय पढ़ें]

Update: 2018-01-15 10:13 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने आईसी शर्मा बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कं. लिमामले की सुनवाई के दौरान “अंडर-इंश्योरेंस” और “एवरेजिंग-आउट” के सिद्धांतों का उदाहरण देते हुए कहा जब एक समूह के तहत बहुत सारी वस्तुओं का बीमा एक नाम तहत होता है और जब इनमें से सारे नहीं बल्कि मात्र कुछ वस्तुएं चोरी चली जाती हैं या खो जाती हैं तो उसमें “अंडर-इंश्योरेंस” का सिद्धांत लागू होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर बीमा नीति के तहत कवर अधिकाँश मूल्यवान वस्तुएं या सभी ऐसी वस्तुएं चोरी चली जाती हैं तो फिर बीमा कंपनी को जितनी मूल्य की वस्तुओं का बीमा हुआ है वह मूल्य देना होता है।

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने उपभोक्ताओं द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के खिलाफ दायर एक अपील पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। इन उपभोक्ताओं ने एक बीमा कंपनी के खिलाफ शिकायत की थी जिसने उसके घर में सेंधमारी हो जाने के बाद हाउसहोल्डर बीमा के दावे को अस्वीकार कर दिया था।

अंडर इंश्योरेंस” बीमा धारकों के लिए हानिकारक

पीठ ने कहा कि अंडर इंश्योरेंस का मतलब यह हुआ कि बीमाधारक ने एक ऐसी पालिसी ली है जिसमें उसने बीमित वस्तुओं की कीमत उसकी वास्तविक कीमतों से कम आंकी है।

कोर्ट ने कहा, “भारत जैसे देश में ऐसा प्रीमियम कम देने के लिए किया जाता है। यह बीमाधारकों को नुकसान पहुंचाता है क्योंकि अगर सारी बीमित संपत्ति का नुकसान हो जाता है तो भी बीमाधारक को अधिकतम वही राशि मिलेगी जितने की बीमा कराई गई है, और इससे एक पैसा भी ज्यादा नहीं।”

कोर्ट ने कहा, “उदाहरण के लिए एक व्यक्ति हाउसहोल्डर पालिसी लेता है जिसमें फायर बीमा भी शामिल है और वह अपने घर की संरचना और उसमें रखी वस्तुओं की कीमत 50 लाख रुपए आंकता है तो अगर उसकी वास्तविक कीमत भले ही एक करोड़ क्यों न हो, और अगर आग में सारी संपत्ति जलकर राख हो जाती है, उसे 50 लाख से अधिक की राशि नहीं मिल सकती।”

पीठ ने दूसरा उदाहरण दिया। “अगर एक व्यक्ति एक पेंटिंग का बीमा एक लाख का कराता है जबकि उसकी कीमत 10 लाख है, अगर वह पेंटिंग खो जाती है तो बीमा लेने वाले को एक लाख रुपए ही मिलेगा। अगर सभी बीमित वस्तु जो कि एक ही हेड के तहत है, चोरी चली जाती है या नष्ट हो जाती है तो बीमा कंपनी उसमें औसत का सिद्धांत नहीं लगा सकती क्योंकि ऐसा हो सकता है कि घाटा 10 लाख रुपए का हुआ है पर बीमा लेने वाले को मात्र एक लाख ही मिलेगा क्योंकि उसने इतना ही वैल्यू घोषित किया था और इसी वैल्यू का प्रीमियम अदा किया था।

एवरेजिंग आउट” उस समय लागू होता है जब सभी वस्तुएं नष्ट नहीं होतीं

कोर्ट ने कहा, “मान लिया जाए कि पूरे घर का 50 लाख रुपए में बीमा कराया गया था पर मूल्यांकन के दौरान पाया गया कि घर की संरचना और उसमें मौजूद सामान की कीमत एक करोड़ रुपए है और अगर बीमाधारक यह दावा करता है कि उसको 40 लाख का नुकसान हुआ है तो उसको सिर्फ 20 लाख रुपए ही मिलेंगे क्योंकि इस केस में एवरेजिंग आउट का सिद्धांत लागू होगा।”

यह कहा जाता है कि अगर सामान की कीमत जितने का बीमा कराया गया है उससे अधिक होती है तो यह माना जाता है कि बीमा धारक ने वस्तुओं की अबीमित कीमत के लिए बीमा नहीं कराया है और इसलिए इसके दावे में एवरेजिंग आउट का सिद्धांत लागू होता है। मतलब, बीमा धारक को कराई गई बीमा के समानुपात में राशि का भुगतान होता है न कि बीमित वस्तुओं की वास्तविक मूल्य की तुलना में।

पालिसी के नवीनीकरण से पहले नीति में बदलाव के बारे में बताया जाना चाहिए

कोर्ट ने कहा कि एक बार जब बीमा कंपनी नीति को “एज पर लिस्ट पॉलिसीज” से “पॉलिसीज फॉर कंसोलिडेटेड अमाउंट्स” कर देती है तो बीमित व्यक्ति से यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह मूल्यांकन के साथ आइटम-वाइज विवरण देगा। कोर्ट ने कहा कि अगर बीमा कंपनी चाहती है कि बीमा खरीदने वाला आइटम-वाइज विवरण दे तो बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह अपने ग्राहक को बीमा कराने के समय इस बात की जानकारी दे।

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