प्रयोजनों पर मनोरंजन कर के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया विभाजित फैसला [निर्णय पढ़ें]
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को प्रयोजनों पर मनोरंजन कर लगाने के मामले में विभाजित फैसला दिया।
कोर्ट इस मामले में 22 याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था जिसमें दिल्ली एंटरटेनमेंट एंड बेटिंग टैक्स एक्ट में संशोधन को चुनौती दी गई है। इस संशोधन के अनुसार धारा 6(1) के तहत किसी मनोरंजन स्थल पर प्रवेश पर कर लगाने का प्रावधान है। धारा 2(m) के तहत “प्रवेश पर भुगतान” की परिभाषा है “ऐसा कोई भी भुगतान जो कि “मनोरंजन से जुड़ा हुआ है और जो कि किसी व्यक्ति को चुकाना पड़ता है...”।
यह संशोधन प्रायोजन की राशि को ‘प्रवेश के लिए भुगतान’ की श्रेणी में ला देता है। फिर, जो संशोधन किया गया है वह अप्रैल 1998 से ही लागू होगा। याचिकाकर्ता ने अब इस रकम को कर के रूप में वसूली को चुनौती दी है और अब तक इस चुकाई गई राशि को लौटाने की अपील की है।
इन लोगों का कहना था कि प्रायोजन की जो राशि उन्हें मिलती है उसे कार्यक्रम के आयोजन पर खर्च किया जाता है और उसे ‘प्रवेश के लिए भुगतान’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इनका कहना था कि जब कोई प्रायोजक किसी करार के तहत उनके किसी प्रोग्राम को प्रायोजित करता है तो वह ऐसा उस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए देता है और इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि “प्रायोजक का मनोरंजन किया जा रहा है”।
याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार सूची-II के एंट्री 62 के तहत ‘मनोरंजन सहित किसी भी सुविधा’ पर कर लगा सकती है। उन्होंने इसके बाद आरोप लगाया कि कथित संशोधन संविधान के अधिकारक्षेत्र के बाहर है क्योंकि याचिकाकर्ता सिर्फ इस तरह के आयोजनों का आयोजन करता है और वह इस तरह के कार्यक्रम में दर्शक नहीं होता और पेश किए जा रहे मनोरंजन का लाभ भी नहीं उठाता।
न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट : संशोधन के खिलाफ राय
न्यायमूर्ति भट ने यह कहते हुए याचिका पेश करने की अनुमति दी कि संशोधन की परिणति उचित मनोरंजन कर लगाने में नहीं हुई क्योंकि सिर्फ ‘प्रवेश के लिए भुगतान’ को संशोधित कर देने से इस तरह की वसूली नहीं हो सकती। उनका मत था कि इस तरह का कर सिर्फ अधिनियम की धारा 6(1) के संशोधन से ही हो सकता है। इसलिए यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 265 के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर संशोधन को सही मान भी लिया जाता है तो इसको पिछली तारीख से लागू करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 265 के खिलाफ होगा।
न्यायमूर्ति दीपा शर्मा की राय
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि किसी प्रायोजित मनोरंजक कार्यक्रम के आयोजक कर चुकाने से इसलिए नहीं बच सकते क्योंकि नकद में पैसे प्राप्त करने के बदले वे सेवाएं, लाभ और अन्य रूप में प्राप्त करते हैं।
कोर्ट ने कहा कि फॉर्म 6 दिल्ली एंटरटेनमेंट एंड बेटिंग टैक्स रूल, 1997 के तहत आयोजकों को बिना टिकट के आयोजन की अनुमति देता है और उन्हें अपने प्रायोजकों और विज्ञापनदाताओं के नाम बताने होते हैं। उन्हें यह भी बताना होता है कि इन स्रोतों से उन्हें कितने पैसे मिले हैं। इसका मतलब तो यह हुआ कि उक्त संशोधन के द्वारा कोई नया कर नहीं लगाया गया है।