वायु प्रदूषण : SC ने कडे नियमों के तहत सीमेंट और लाइम फैक्ट्रियों में पेटकोक और फर्रनेस ऑयल की इजाजत दी
दिल्ली में वायु प्रदूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीमेंट फैक्ट्रियों और लाइम फैक्ट्रियों में सरकार के कडे नियमों के तहत पेट कोक के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने थर्मल पावर प्लांट में फरनेस आयल के इस्तेमाल की एक साल यानी 31 दिसंबर 2018 तक इस्तेमाल की इजाजत भी दी है।
जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने प्रदूषण को लेकर केंद्र सरकार और एपका के एक्शन प्लान को मंजूरी दे दी है।
वहीं केंद्र सरकार ने थर्मल पावर प्लांट के लिए नियम लागू करने के लिए सात साल यानी 2022 तक का वक्त मांगा है जिस पर कोर्ट अगली सुनवाई पर विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट डीजल कार पर सेस लगाने और BS 6 पर सुनवाई जनवरी में करेगा।
दरअसल हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की फैक्ट्रियों में पेटकोक और फर्रनेस आयल के मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में थर्मल पॉवर प्लांट और सीमेंट की फैक्ट्री में फर्रनेस आयल और पेटकोक के इस्तेमाल की इजाज़त दी जाए।
केंद्र सरकार ने कहा था कि थर्मल पॉवर प्लांट में फर्रनेस आयल के इस्तेमाल से बहुत ही कम मात्रा में प्रदूषण फैलता है।केंद्र सरकार ने कहा कि पॉवर प्लांट को शुरू करने के लिए और बंद करने के लिए फर्रनेस आयल की जरूरत होती है। वही सीमेंट बनाने के लिए पेटकोक की जरूरत होती है। सरकार ने कहा कि पेटकोक को जलाया नही जाता बल्कि इसे सीमेंट में मिलाया जाता है। केंद्र सरकार ने कहा कि वो पेटकोक के आयात पर रोक को लेकर विचार कर रही है।
17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली और आसपास के राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की फैक्ट्रियों में पेटकोक व फर्रनेस ऑयल के इस्तेमाल पर रोक तो बनी ही रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वो पेटकोक व फर्रनेस ऑयल की बिक्री पर सशर्त रोक लगाने पर विचार करे।
जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से ASG आत्माराम नाडकर्णी ने कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की फैक्ट्रियों में पेटकोक व फर्रनेस ऑयल के इस्तेमाल पर रोक लगाने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। उसी दौरान एमिक्स क्यूरी वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ फैक्ट्रियों में इसके इस्तेमाल पर रोक भर से समस्या का समाधान नहीं निकलेगा बल्कि इसकी बिक्री पर रोक लगाई जानी चाहिए। फिलहाल बाजार में ये आसानी से उपलब्ध हैं। ऐसे में सशर्त रोक लगाई जा सकती है जैसे सीमेंट बनाने के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है। हालांकि कोर्ट ने केंद्र सरकार से इसे लेकर विचार करने और कोर्ट में जवाब दाखिल करने को कहा है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तीन राज्यों में जिस तरह फैक्ट्रियों में पेटकोक व फर्रनेस ऑयल के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है, अन्य राज्य व केंद्रशासित प्रदेश भी इस पर विचार करें।
दरअसल 6 नवंबर को पेटकोक व फर्रनेस ऑयल के बैन को लेकर NCR की फैक्ट्रियों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने EPCA और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच में कहा था कि प्रदूषण को लेकर फैक्टियां भी चिंतित हैं और इसे लेकर तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। इससे पहले केंद्र ने 23 अक्तूबर को ही ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है और इसके लिए दो महीने में सुझाव देने हैं। 31 दिसंबर 2017तक सरकार फैक्ट्रियों के धुएं को लेकर मानक तैयार कर देगी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इन फैक्ट्रियों को 31 दिसंबर तक मोहलत दे ताकि वो भी इन मानकों के अनुसार काम कर सकें। याचिकाकर्ताओं के वकीलों का कहना था कि फैक्ट्रियों को दूसरी तकनीक लाने के लिए वक्त चाहिए। कोर्ट के इस आदेश से फैक्ट्रियों का काम बंद हो गया है।
दरअसल NCR की फैक्ट्रियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उस आदेश में संशोधन की गुहार लगाई गई थी जिसमें एक नवंबर से फैक्ट्रियों में पेटकोक और फर्रनेस के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी।
गौरतलब है कि 24 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने NCR में फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषण के लिए मानक तय करने के मामले में केंद्र सरकार पर गहरी नाराजगी जाहिर की थी। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार NCR की फैक्ट्रियों में पेटकोक और फर्रनेस के इस्तेमाल को रोकने के लिए कदम उठाएं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक नवंबर से इन फैक्ट्रियों में पेटकोक व फर्रनेस ऑयल के इस्तेमाल पर रोक रहेगी।