मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम का उल्लंघन करते हुए 72 वर्षीय बुजुर्ग को हिरासत में रखने पर दिल्ली हाई कोर्ट नाराज [आर्डर पढ़े]

Update: 2017-12-11 14:13 GMT

दिल्ली हाई कोर्ट ने कुछ दिन पहले 72 वर्षीय बुजुर्ग को हिरासत में रखने का निर्देश देने के लिए मजिस्ट्रेट और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पेशेवरों की कड़ी आलोचना की। बुजुर्ग राम कुमार को इन्स्टीच्यूट ऑफ़ ह्यूमन बिहेविअर एंड अलाइड साइंसेज (इहबास) ने मानसिक स्वास्थय अधिनियम 1987 को ताक पर रखते हुए उनको बंदी बनाकर रखने का आदेश दिया था।

कुमार पिछले 10 सालों से अधिक समय से मोटर वाहन दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल, रोहिणी में एक दावे के मामले में एक पक्षकार के रूप में केस लड़ रहे हैं। कुमार के मिनीबस से दुर्घटना हो गई थी। दुर्घटना के समय इस मिनीबस को उनका बेटा चला रहा था।

हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार, ट्रिब्यूनल में 3 नवंबर को सुनवाई के दौरान कुमार और दावा दायर करने वाले व्यक्ति के कुछ वकीलों के बीच कहासुनी हुई।

ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी ने इसके बाद पुलिस को बुलाया और कुमार को पास के अस्पताल में मानसिक जांच के लिए भेजने का निर्णय किया। संक्षिप्त जांच के बाद उनके बहस करने की आदत के आधार पर उन्हें मानसिक रोगियों के अस्पताल के एक वार्ड में भेजने को कहा गया ताकि वहाँ उनकी आगे की जांच हो सके। जिन डॉक्टरों ने उनकी जांच की उन्होंने उनमें किसी भी तरह की मानसिक गड़बड़ी (सैकोपैथोलोजी) जैसी बात नहीं पाई।

इसके बाद, कुमार को ड्यूटी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया जिसने कुमार से बातचीत करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि उनको इहबास में अगले 24 घंटे तक निगरानी में रखा जाए क्योंकि वह हर व्यक्ति को धमकी देते रहते हैं और ऐसा लगता है कि उनके “हिंसक होने” की आशंका है।

न्यायमूर्ती एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आईएस मेहता ने कहा कि अभी तक कुमार के परिवार के किसी भी सदस्य को उनको बंद रखने के बारे में सूचित नहीं किया गया है जबकि उनके केस पेपर और उनके मोबाइल से उनका पता बहुत ही आसानी से प्राप्त किया जा सकता था।

जजों ने कहा, “यह बहुत ही डरावनी स्थिति है और इससे विभिन्न स्तरों पर मानसिक स्वास्थ्य अधनियम , 1987 का उल्लंघन हुआ है”।

कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने इसके बाद एक और आदेश दिया और अधिनियम की धारा 28(1) का उल्लेख किए बिना कहा कि कुमार को आगे इसी तरह हिरासत में रखने का आदेश दिया। इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट मानसिक रूप से कथित रूप से बीमार व्यक्ति के मेडिकल सर्टिफिकेट की मांग कर सकता था। पर जो हुआ वह इस अधिनियम के खिलाफ है।

कोर्ट ने कहा कि कुमार की हिरासत की अवधि 15 दिनों के लिए बढ़ा दी गई जबकि मजिस्ट्रेट एक बार में सिर्फ 10 दिनों तक ही इसे बढ़ा सकता है। इसके अलावा, ऐसा तब किया गया जब कुमार की पैरवी करने के लिए कोई वकील उपलब्ध नहीं था। अब कुमार को राजीव गाँधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में रखा गया है क्योंकि हिरासत के दौरान उनके दिल की स्थिति खराब हो गई थी।

कोर्ट ने कुमार को हिरासत में रखने के सभी तरह के आदेशों को निरस्त कर दिया और उनको छोड़े जाने का आदेश दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि उसके आदेश की एक कॉपी हाई कोर्ट की प्रशासनिक कमिटी को भेजा जाए जो कि मजिस्ट्रेट के कार्यों की निगरानी करता है ताकि उसके खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई की जा सके।

कोर्ट ने इबहास और मानसिक स्वास्थय से जुड़े उन पेशेवरों से भी इस बारे में स्पष्टीकरण माँगा है जिन्होंने कुमार की जाँच की थी। कोर्ट ने उनसे अपनी कार्रवाई के कारणों के बारे में सफाई देने को कहा है।

कोर्ट ने कहा है उसके आदेश की एक कॉपी दिल्ली न्यायिक अकादमी को भेजा जाए। अकादमी को अगले वर्ष कम से कम चार विशेष ओरिएंटेशन कोर्स आयोजित करने को कहा है ताकि न्यायिक अफसरों और इहबास के स्वास्थ्य पेशेवरों और दिल्ली के इसी तरह के संस्थानों के पेशेवरों को इस बारे में प्रशिक्षित किया जा सके। इस मामले की अगली सुनवाई अब 14 दिसंबर को होगी।


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