सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले के परिवार के लोग पंचायत की सदस्यता के लिए अयोग्य नहीं [निर्णय पढ़ें]

Update: 2017-11-19 13:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कहा है कि सरकारी जमीन या सार्वजनिक संपत्ति पर कब्जा करने वालों के परिजन पंचायत का सदस्य बनने के अयोग्य नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट ने सागर पांडुरंग धुन्दरे  बनाम केशव आभा पाटिल  मामले में महाराष्ट्र ग्रामीण पंचायत अधिनियम की धारा 14 की व्याख्या करते हुए कहा कि सिर्फ सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले की ही सदस्यता जाएगी और वह अयोग्य  होगा न कि उसके परिवार के सदस्य।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आर. भानुमति की बेंच के समक्ष अपील में कहा गया कि पंचायत के चुने हुए सदस्य के पिता या दादा ने अगर सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है और इन सभी लोगों को उसका लाभ मिल रहा है सिर्फ सदस्य को ही नहीं। बेंच को कहा गया कि अगर किसी गैर कानूनी कब्जे का लाभ उठा रहा है तो वह भी कब्जा करने वाले की ही श्रेणी में आएगा।

बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के दो परस्पर विरोधी फैसले का जिक्र किया और कहा कि अगर इस तरह के किसी विधायी इरादे को स्पष्ट नहीं किया गया है तो क़ानून बनाने वालों के इस इरादे को स्पष्ट करना उनका काम नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि राज्य अगर हितों के टकराव वाले लोगों को पंचायत का सदस्य बनने या उनके बने रहने के खिलाफ है तो इसके लिए वह कानून में उपयुक्त बदलाव कर सकती है।

अदालत ने कहा, “वर्तमान क़ानून के प्रावधानों के अनुसार सिर्फ वही व्यक्ति सदस्य नहीं हो सकता जिसने सरकारी जमीन पर पहली बार वास्तव में कब्जा किया है। इसी तरह अगर किसी सदस्य के खिलाफ अधिनियम की धारा 53(1) के तहत अवैध कब्जा करने के लिए दंडित किया जा चुका है तो उसे भी हटाया जा सकता है। इसी तरह अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ अगर धारा 53 (2) या (2A) के तहत बेदखली का अंतिम फैसला सुनाया जा चुका है तो वह भी सदस्य बने रहने के योग्य नहीं है”।


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