‘टाइपोग्राफिकल’ गलती : गुजरात हाईकोर्ट ने फांसी की सजायाफ्ता पर आदेशों में संशोधन किया [आर्डर पढ़े]

Update: 2017-11-19 03:53 GMT

गुजरात हाईकोर्ट ने एक मामले में ये पाते हुए कि जमानत की अर्जी दाखिल करने वाले को ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास नहीं बल्कि मौत की सजा सुनाई है, अपने आदेश में संशोधन करते हुए कडी शर्तें जोडी हैं।

ठाकुर नागजीजी बाबूजी को दो नवंबर को अस्थाई जमानत दी गई थी। इस आदेश में खंडपीठ ने लिखा था कि वो आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।

लेकिन बाद में अभियोजन ने इस संबंध में एक अर्जी दाखिल की और कोर्ट को ध्यान दिलाया कि उस वास्तव में मौत की सजा दी गई है  ये आदेश में एक ‘ टाइपोग्राफिकल’ गलती है। अर्जी में संशोधन की मांग की गई और आशंका जताई गई कि अगर दोषी जमानत पर बाहर निकला तो फरार हो सकता है और वापस जेल नहीं जाएगा।

हाईकोर्ट ने अपने पुराने आदेश को सही किया और कहा कि राज्य द्वारा जताई गई आशंका वाजिब है।

कोर्ट ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए याचिकाकर्ता को  50000 रुपये का निजी मुचलका जमा करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसके खर्च पर सिर्फ पुलिस निगरानी में रिहा किया जाएगा। रिहाई से पहले उसे बताना होगा कि अस्थाई जमानत के वक्त वो कहां रहेगा।

दरअसल बाबूजी को ट्रायल कोर्ट ने हत्या के केस में फांसी की सजा सुनाई थी। उसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित है।


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