21 साल जेल में बिताने के बाद निर्दोष घोषित; इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, आपराधिक अपील निपटाने में देरी गंभीर चिंता का कारण [आर्डर पढ़े]

Update: 2017-11-17 15:19 GMT

वर्ष 1996 में एक हत्या के अभियुक्त के रूप में 21 साल तक जेल में रहने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस व्यक्ति को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 2005 से इस मामले की सुनवाई का लंबित होना न्याय प्रशासन से जुड़े सभी लोगों के लिए गंभीर चिंता का कारण है।

इस आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति नारायण शुक्ला और न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने अभियुक्त राम लखन को बरी कर दिया और निचली अदालत द्वारा आजीवन कारावास की उसकी सजा को माफ़ कर दिया। निचली अदालत ने राम लखन को छविनाथ नामक व्यक्ति की चाकू से हत्या करने का दोषी माना था।

पीठ ने अपने फैसले में कहा, “न्याय दिलाने में होने वाली देरी मामले को निपटने में होने वाली देरी को दर्शाता है जबकि इस अवधि के दौरान मामले का निपटारा हो जाने की उम्मीद की जानी चाहिए थी। कोई यह उम्मीद नहीं करता कि एक ही दिन में फैसला हो जाएगा। हालांकि, परेशानी तब शुरू होती है जब किसी मामले को निपटाने में लगा वास्तविक समय इसमें जितना समय लगना चाहिए उससे कहीं अधिक होता है।”

कोर्ट ने विधि आयोग की रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि न्याय दिलाने में होने वाले विलंब को रोकने और इस तरह के मामले में एक तरह का स्तर बनाए रखने के लिए आपराधिक मामले में अपील की सुनवाई हाई कोर्ट में जितना जल्दी हो सके होना चाहिए।

अभियुक्त को बरी करते हुए और आजीवन कारावास की उसकी सजा को समाप्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन मामले को जब तथ्यों की सम्पूर्णता और परिस्थितियों की कसौटी पर देखा जाता है तो तो यह उस तरह का संतोष नहीं देता जो किसी अपीलकर्ता को दोषी ठहराने के लिए अनिवार्यतः आवश्यक होता है। पीठ ने कहा, “हम बेहिचक कह सकते हैं कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए अभियोग को साबित करने में विफल रहा है और इसलिए वह क़ानून के तहत संदेह के लाभ का हकदार है।”


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