गुर्जर आरक्षण को लेकर राजस्थान सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने कहा फिलहाल कोई कदम ना उठाए सरकार

Update: 2017-11-15 15:58 GMT

राजस्थान सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुर्जर सहित चार अन्य जातियों को आरक्षण देने के विधेयक पर राज्य सरकार को आरक्षण संबंधी किसी भी तरह के प्रशासनिक या अन्य कदम उठाने पर रोक लगा दी है जिससे आरक्षण का कोटा 50 फीसदी की सीमा से पार कर जाए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने राजस्थान सरकार की हाईकोर्ट के फैसले की चुनौती देने वाली याचिका पर ये फैसला सुनाया है।

बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि हाईकोर्ट ने जो रोक लगाने का फैसला किया वो गैरजरूरी था। लेकिन सभी तथ्यों व हालात पर विचार करने और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों के मद्देनजर राज्य सरकार पर इस मामले में कोई भी प्रशासनिक या अन्य कदम उठाने के लिए रोक लगाई जाती है जिससे आरक्षण की सीमा 50 फीसदी पार कर जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को हाईकोर्ट के पास ही भेजते हुए इस पर सुनवाई करने को कहा है और इसके निपटारे तक ये रोक जारी रहेगी।

दरअसल हाईकोर्ट ने राजस्थान सरकार के ओबीसी कोटा के तहत आरक्षण को 21 से बढाकर 26 फीसदी करने के विधेयक पर रोक लगा दी थी। ये गुर्जर समुदाय को आरक्षण का लाभ देने के लिए किया गया।

ये बिल 26 अक्तूबर को पास करते हुए अति पिछडा वर्ग बनाया गया जिसमें गुर्जर व चार अन्य जातियों को नौकरी व शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाना था।

द बैकवर्ड क्लासेज ( रिजर्वेशन ऑफ सीटस इन एजुकेशनल इंस्टीटयूशन्स इन द स्टेट एंड ऑफ अपाईंटमेंट एंड पोस्टस इन सर्विसेज इन द स्टेट) बिल, 2017 के तहत गुर्जर, बंजारा, गडिया- लोहार, राइका और गडरिया समुदाय को 5 फीसदी आरक्षण दिया गया। इसके तहत राजस्थान में आरक्षण का कोटा 54 फीसदी हो गया जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फीसदी से ज्यादा है।

13 नवंबर को हुई सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से पेश AG के के वेणुगोपाल ने कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि अभी राज्यपाल ने सहमति नहीं दी है।

वहीं याचिकाकर्ता की ओर ये पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक आरक्षण कोटा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता। राज्य OBC आयोग ने भी कहा है कि ये आरक्षण उसी समुदाय को दिया जा सकता है जो अन्य पिछडा वर्ग के तहत वर्गीकृत हैं और राज्य में उनकी जनसंख्या 52 फीसदी है।

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता गंगा सहाय शर्मा की ओर से उन्होंने कहा कि इस संबंध में पहले कानून को भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था और वो मामला अभी तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

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