किताब के जटिल शब्दों में नहीं बल्कि घोषणाकर्ता की भाषा में दर्ज हों मृत्यूपूर्व बयान: कर्नाटक हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
एक अहम फैसले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि मृत्यूपूर्व बयान घोषणा करने वाले व्यक्ति की भाषा में ही दर्ज होने चाहिएं।
पेश मामले में अभियोजन पक्ष के मुताबिक मृत पीडित, जोकि अनपढ़ था और पेशे से कुली था। लेकिन उसका मृत्यूपूर्व बयान जटिल भाषा में था।
न्यायाधीश रत्नाकला और न्यायाधीश के एस मुदगल ने इस मृत्यूपूर्व बयान को अविश्वसनीय करार देते हुए कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उसने उस जटिल भाषा में घटना का मकसद बयान किया जो भाषा उसके लिए परिचित नहीं थी। अगर मृत्यूपूर्व बयानों का अहम हिस्सा घोषणा करने वाले की भाषा में अक्षरश: दर्ज किया गया जैसा कि सवाल नंबर 21 में किया गया और ये उसके मूल कथन थे तो ऐसा ही दोष सिद्ध करने के लिए और बयानों की पुष्टि करने के लिए पूरे बयानों में किया जाना चाहिए था।
कोर्ट ने ये भी कहा कि इस घोषणा में किताबी जटिल शब्दों का इस्तेमाल वाजिब शक पैदा करता है कि क्या घोषणा करने वाले में सही मायने में दिमाग से इसे लिखित रूप से अनुवाद किया है।
कोर्ट ने आगे टिप्पणी करते हुए कहा कि आसपास के राज्यों में आपराधिक नियमों की प्रथा के मुताबिक जहां तक संभव हो बयान घोषणा करने वाले की भाषा में दर्ज किए जाने चाहिएं। कर्नाटक आपराधिक नियम की प्रथा में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं दिया गया है। लेकिन समझदारी का नियम यही चेताता है कि घोषणा करने वाले का कथन उसके द्वारा बताई गई भाषा में ही दर्ज किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने ये मानते हुए कि इस मृत्यूपूर्व बयानों में तथ्यों की पुष्टि नहीं होती बल्कि ये पूरी तरह विश्वसनीय भी नहीं हैं, आरोपी को बरी कर दिया।