दहेज प्रताडना को लेकर जारी गाइडलाइन पर फिर से विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस ने कहा, इससे सहमत नहीं [याचिका पढ़े]
केरल के सबरीमाला मंदिर में महिला अधिकारों के मुद्दे को संविधान पीठ भेजने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताडना यानी भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 498 A पर जारी अपनी ही गाइडलाइन पर फिर से विचार करने का फैसला किया है।
शुक्रवार को जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि कोर्ट उस आदेश से अहसमत है क्योंकि कोर्ट कानून नहीं बनाता बल्कि उसकी व्याख्या करता है। सीआरपीसी में पति को सरंक्षण देने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय मौजूद हैं। कोर्ट समझता है कि ऐसे आदेश महिला अधिकार के खिलाफ हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने वी गिरी को इस मुद्दे पर एमिक्स क्यूरी बनाया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने जारी एक आदेश में कहा था कि दहेज के मामलों में सीधे गिरफ्तारी नहीं होगी बल्कि पहले मामले की जांच एक कमेटी करेगी। न्यायधारा नामक संगठन मे एक याचिका में सुप्रीम कोर्ट में गाइडलाइन में संशोधन करने की मांग की थी और कहा था कि कमेटी में दो महिलाएं होनी चाहिए। लेकिन बेंच ने कहा कि कोर्ट फिलहाल इस पर नहीं जा रहा
गौरतलब है कि 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब पति या ससुराल वालों की यूं ही गिरफ्तारी नहीं होगी। दहेज प्रताड़ना यानी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए के दुरुपयोग से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने एक और अहम कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने हर जिले में कम से एक परिवार कल्याण समिति का गठन करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि समिति की रिपोर्ट आने तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। साथ ही इस काम के लिए सिविल सोसायटी को शामिल करने के लिए कहा गया है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि यदि महिला घायल होती है या फिर उसकी मौत होती है तो यह नियम लागू नहीं होंगे। धारा-498 ए के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित ने ये गाइडलाइन जारी की थी। बेंच ने कहा था कि पति या ससुरालियों के हाथों प्रताड़ना झेलने वाली महिलाओं को ध्यान में रखते हुए धारा-498 ए को कानून के दायरे में लाया गया था। प्रताड़ना के कारण महिलाएं खुदकुशी भी कर लेती थीं या उनकी हत्या भी हो जाती थी।
कोर्ट ने कहा था कि यह बेहद गंभीर बात है कि शादीशुदा महिलाओं को प्रताड़ित करने के आरोप को लेकर धारा-498 ए के तहत बड़ी संख्या में मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। बेंच ने कहा था कि इस स्थिति से निपटने के लिए सिविल सोसायटी को इससे जोड़ा जाना चाहिए। साथ ही इस तरह का प्रयास करने की जरूरत है कि समझौता होने की सूरत में मामला हाईकोर्ट में न जाए बल्कि बाहर ही दोनों पक्षों में समझौता करा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एएस नादकरणी और वरिष्ठ वकील वी गिरी की दलीलों पर विचार करते हुए कई निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने कहा कि देश के हर जिले में कम से कम एक परिवार कल्याण समिति बनाई जानी चाहिए. हर जिले की लीगल सर्विस अथारिटी द्वारा यह समिति बनाई जाए और समिति में तीन सदस्य होने चाहिए। समय-समय पर जिला जज द्वारा इस समिति के कार्यों का रिव्यू किया जाना चाहिए। समिति में कानूनी स्वयंसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त व्यक्ति, अधिकारियों की पत्नियों आदि को शामिल किया जा सकता है। समिति के सदस्यों को गवाह नहीं बनाया जा सकता।