हदिया केस में नया मोड, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने कैसे अनुच्छेद 226 के तहत शादी रद्द की ?
केरल के सनसनीखेज हदिया केस में एक और नया मोड आ गया जब मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि 24 साल की लडकी जो बालिग है, को उसकी इच्छा के बिना पिता द्वारा बंधक बनाकर रखा नहीं जा सकता। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ये भी कहा है कि वो ये देखेंगे कि क्या अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट शादी को रद्द कर सकता है?
बेंच ने ये भी कहा कि वो लडकी की कस्टडी के लिए पिता की जगह किसी दूसरे को नियुक्त कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट विस्तार से इस मामले की सुनवाई 9 अक्तूबर को करेगा।
हदिया के पति शैफीन जहां की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोर्ट ने अपने अधिकारक्षेत्र से बाहर जाकर इस मामले में NIA जांच के आदेश दिए हैं। इस मामले में राज्य या लडकी के पिता ने नहीं बल्कि उन्होंने अपील दाखिल की थी। दवे ने कहा कि कोर्ट के इन आदेशों से दुनियाभर में गलत संदेश गया है और ये बहुउद्देशीय धार्मिक समाज की नींव पर अटक गया है। दवे ने यहां तक कह दिया कि बीजपी के दो मुस्लिम नेताओं ने हिंद से शादी की है तो क्या इसे भी लव जिहाद का नाम दिया जाएगा और जांच कराई जाएगी ?
लेकिन बेंच ने कहा कि वो सिर्फ कानून पर बहस करें तो वहीं ASG तुषार मेहता ने कहा कि NIA जांच ये जानने के लिए जरूरी है कि क्या ये अलग मामला है या ये एक पैटर्न है। मेहता ने कहा कि शैफीन की ओर से पहले पेश कपिल सिब्बल ने भी NIA जांच का विरोध नहीं किया था और ये आदेश सहमति से दिया गया था।
खासतौर पर एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा हदिया का वीडियो जिसमें हदिया ने साफ किया है कि उसे जबरन बंधक बनाया गया है और उसने शैफीन से अपनी मर्जी से शादी की है, बेंच वकील पीवी दिनेश द्वारा केरल महिला आयोग की याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गई है जिसमें लडकी से मिलने और उससे बातचीत की रिपोर्ट सीलबंद कवर में कोर्ट में दाखिल करने की मांग की गई है। कोर्ट शैफीन की NIA जांच के आदेश को वापस लेने की याचिका पर भी सुनवाई करेगा।
16 सितंबर को हदिया के पति शफ़ीन जहां ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कोर्ट के उस आदेश को वापस लेने की मांग की है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी NIA से कराने का आदेश दिया था।
याचिका में पति ने आरोप लगाया है कि लड़की के परिवार वाले लड़की को प्रताडित कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि लड़की अखिला अशोकन वीडियो में कह रही है कि वो मुस्लिम की तरह रहना चाहती है। याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट लड़की के पिता को आदेश दे कि वो लड़की को कोर्ट में पेश करे।
16 अगस्त को केरल के हदिया केस की जांच सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (NIA ) को सौंप दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस आर वी रविंद्रन जांच की निगरानी सौंपी थी लेकिन बाद में उन्होंने इंकार कर दिया। NIA को ये जांच करनी है कि इस घटना के पीछे चरमपंथियों का हाथ है या नहीं।
सुनवाई के दौरान NIA ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ये केस अकेला केस नहीं लगता और इसका प्रतिबंधित संगठन सिमी से संबंध हो सकते हैं। NIA की ओर से पेश ASG मनिंदर सिंह ने CJI खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच के सामने कहा था कि ये अकेला एेसा मामला नहीं है और ये एक पैटर्न है।
वहीं केरल पुलिस ने कहा कि जांच अभी पूरी नहीं हुई है। हालांकि केरल पुलिस ने NIA जांच का विरोध नहीं किया था
वहीं याचिकाकर्ता शफीन जहान की ओर से इसका विरोध किया गया था और कहा गया कि कोर्ट को इस मामले की सुनवाई करनी चाहिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले NIA की जांच में कुछ जानकारी मिले तो फिर आगे सुनवाई करेंगे।
दस अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने केरल पुलिस को हदिया केस से जुडे दस्तावेज और जानकारी नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (NIA ) से साझा करने के निर्देश दिए थे ताकि एजेंसी ये छानबीन कर सके कि हदिया केस एक अलग केस है या ये इसके पीछे कोई बडी साजिश है।
अपनी अर्जी में एजेंसी की ओर से कहा गया कि केरल हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच केरल पुलिस को सौंपी थी। हाईकोर्ट ने NIA को जांच के लिए नहीं कहा था। याचिका के मुताबिक केरल पुलिस ने इस संबंध में अपराध संख्या 21/2016 में 57 केरल पुलिस एक्ट के अलावा IPC की धारा 153 A, 295A और 107 के तहत मामला दर्ज किया है और जांच संबंधी कई स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट में दाखिल की हैं। NIA इस मामले की जांच कानून के मुताबिक कर सकता है लेकिन इसके लिए कोर्ट के आदेश जारी करने होंगे। वैसे भी NIA हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के आदेश से केसों की जांच करता है।
ये मामला हदिया के हिंदू से मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कर मुस्लिम युवक से निकाह का मामला है। इसी साल 25 मई को केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस निकाह को शून्य करार दे दिया था और युवती को उसके हिंदू अभिभावकों की अभिरक्षा में देने का आदेश दिया था। इस दौरा जस्टिस सुरेंद्र मोहन और जस्टिस अब्राहम मैथ्यू ने विवादित टिप्पणी करते हुए कहा था कि 24 साल की युवती कमजोर और जल्द चपेट में आने वाली होती है और उसका कई तरीके से शोषण किया जा सकता है। चूंकि शादी उसके जीवन का सबसे अहम फैसला होता है इसलिए वो सिर्फ अभिभावकों की सक्रिय संलिप्ता से ही लिया जा सकता है।
वहीं हदिया के पति ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि हाईकोर्ट ने बिना किसी कानूनी आधार के निकाह को शून्य करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि ये फैसला आजाद देश की महिलाओं का असम्मान करता है क्योंकि इसने महिलाओं को अपने बारे में सोचविचार करने के अधिकार का छीन लिया है और उन्हें कमजोर व खुद के बारे में सोचविचार करने में असमर्थ घोषित कर दिया है। ये आदेश महिलाओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार और NIA को इस मामले से जुडे दस्तावेज दाखिल करने को कहा था और हदिया के पिता अशोकन से ये सबूत देने को कहा था कि कट्टरता फैलाने के बाद उसका धर्म परिवर्तन किया गया था।