सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच दिक्कतें खत्म नहीं हुई हैं। द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक कॉलेजियम के वरिष्ठ जज जस्टिस जे चेलामेश्वर ने कहा है कि पूर्व चीफ जस्टिस जे एस खेहर की टेबल कॉफी मीटिंग संवैधानिक कोर्ट में नियुक्ति के लिए बनाए गए नियमों के खिलाफ हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठता में दूसरे नंबर पर जस्टिस चेलामेश्वर जो कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम में शामिल हैं, की पूर्व चीफ जस्टिस खेहर के साथ इस मुद्दे को लेकर बहस हुई थी और जस्टिस चेलामेश्वर ने कॉलेजियम के नियमों को बताया जब उन्होंने जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम से बाइपास करने की धमकी दी।
TOI ने चीफ जस्टिस खेहर को लिखे पत्र का हवाला देते हुए बताया है कि जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा है कि कैसे कॉलेजियम आवेदकों के निजी आग्रह पर जजों का चयन करता है और कैसे पहले के चीफ जस्टिस कॉलेजियम के सदस्यों से निवेदक की तरह बर्ताव करते रहे।
जस्टिस चेलामेश्वर के इस जवाब से मामला प्रकाश में आया है कि कैसे बिना नोटिस या एजेंडा के ही कॉलेजियम की मीटिंग की गई। चीफ जस्टिस खेहर और जस्टिस चेलामेश्वर के बीच चल रही इस खींचतान अब आगे भी जारी रहेगी क्योंकि जस्टिस खेहर के रिटायर होने के बाद जस्टिस चेलामेश्वर सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ जज बन गए हैं।
दरअसल वो 1 सितंबर 2016 से ही कॉलेजियम बैठकों में हिस्सा लेने से इंकार कर चुके हैं और वो सिर्फ जजों की नियुक्ति के लिए बैठकों की लिखित मिनट पर ही अपनी टिप्पणी भेजते हैं।
दरअसल ये समस्या जस्टिस एसके कौल, जस्टिस दीपक गुप्ता, जस्टिस एम एम शांतनागोदर, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जसिस नवीन सिन्हा के नाम की सिफारिश के साथ ही शुरु हुई। रिपोर्ट के मुताबिक एक जज के घर कॉलेजियम की बैठक के नियम तय करने के लिए मीटिंग की गई और बाद में इसे कॉलेजियम मीटिंग बना दिया गया। जब चीफ जस्टिस ने इसे कॉलेजियम मीटिंग बताकर मिनट भेजी तो जस्टिस चेलामेश्वर ने इसे मंजूर करने से इंकार कर दिया। इस पर चीफ जस्टिस ने उन्हें बाईपास करने की धमकी दी और कहा कि कॉलेजियम की प्रक्रिया जारी रखने को कहा।
2 फरवरी को जस्टिस खेहर द्वारा लिखे पत्र के जवाब में जस्टिस चेलामेश्वर ने लिखा है कि ये कानून है कि बिना नोटिस और एजेंडा के मीटिंग नहीं हो सकती। चाहे ये मीटिंग पंचायत बोर्ड, सहकारी समिति, कंपनी या किसी भी वैधानिक या संवैधानिक संस्था की हो। अगर आपको लगता है कि कानूनी सिद्धांत से अलग मीटिंग कराई जा सकती है तो देश को भगवान बचाए। अगर कॉफी टेबल पर बैठकर हुई चर्चा को आप कॉलेजियम मीटिंग मानते हैं तो संविधान द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण दायित्वों को कहां निभाएंगे ? जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा कि वो देश के लिए दुखी हैं।
चीफ जस्टिस के पत्र में कहा गया है कि एक फरवरी को मीटिंग हुई में जस्टिस चेलामेश्वर के कहने पर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के चीफ जस्टिस को छतीसगढ का चीफ जस्टिस बनाया गया है। साथ ही कुछ अन्य जजों को भी वहां नियुक्त करने को मंजूरी दी गई है। जस्टिस चेलामेश्वर इस पत्र को त्रुटिपूर्ण बताते हुए कहा है कि ये बताता है कि कॉलेजियम के सदस्य कोई निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल नहीं हैं बल्कि चीफ जस्टिस के लिए निवेदक की तरह हैं। जस्टिस चेलामेश्वर मे लिखा है कि 2nd जजेज जजमेंट में कोर्ट ने कानून तय किया था। इसके मुताबिक चीफ जस्टिस को कॉलेजियम के सदस्यों से परामर्श लेना होगा। दो या चार ये तो परामर्श के कारण को लेकर तय होगा। इसमें हर सदस्य अपने सुझाव या आपत्ति दे सकता है। इसके बाद ही कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। द टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 12 पेज के लैटर में जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा है कि ये निर्णय चीफ सदस्यों के आग्रह पर चीफ जस्टिस दया दिखाते हुए नहीं दे सकते। चीफ जस्टिस दूसरे जजों के बराबर ही हैं और पहसे नंबर पर हैं। जबकि कई चीफ जस्टिस को लगता है कि वरिष्ठ जज और कोलेजियम के सदस्य कम महत्वपूर्ण हैं। सभी जजों को इस मुद्दे पर अपनी राय रखने का अधिकार है। जस्टिस खेहर के कॉलेजियम से हटाने की धमकी पर जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा है कि चीफ जस्टिस को संवैधानिक तौर पर ये अधिकार नहीं है।