सेना में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट एेसी घटनाओं से बलों में जाता है गलत संदेश

Update: 2017-08-11 13:43 GMT

करीब डेढ साल साल तक बिना सूचना छुट्टी पर रहे  सेना के जवान पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताते हुए कहा है कि ये गंभीर दुराचरण अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है और इसे कतई बर्दाश्त  नहीं किया जा सकता। एेसे मामले सेना में गलत संदेश देते हैं और इनसे सशस्त्र बलों में अनुशासन पर असर पड सकता है।

ये टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें जवान को फिर से नौकरी देने के आदेश दिए गए थे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश में संशोधन करते हुए जवान को सर्विस से मुक्त करने का आदेश दिया है।

दरअसल ट्रिब्यूनल ने अनुशासात्मक समिति के उस आदेश को पलट दिया था जिसमें नल्लम शिवा को चार महीने की सजा के अलावा निचली रैंक और सेवा से बर्खास्त करने के आदेश दिए थे। आर्म्स फोर्सेज ट्रिब्यूनल में नल्लम शिवा ने ये दलील दी थी कि ज्यादा वक्त इसलिए रहा क्योंकि उसके हालात एेसे थे। इसके पीछे वैवाहिक विवाद और पिता की बीमारी मुख्य कारण थे जिनकी  वजह से वो मानसिक रूप से परेशान था।

मामले में ट्रिब्युनल ने माना कि ये उसका पहला दोष था और  वायु सेना के लिए बने डिफेंस सर्विस रेगुलेशन्स के 754 (C) के मुताबिक अत्याधिक और असंगत सजा दी गई है। इसी के चलते उसे बहाल करने के आदेश दिए गए।

मामले की सुनवाई करते हु्ए तीन जजों की बेंच में शामिल जस्टिस ए एम खानवेल्कर ने कहा कि जवान ने डेढ साल में ये जहमत नहीं उठाई कि वो अपने बारे में अपने वरिष्ठ अफसर या नजदीक के मिलिटरी स्टेशन पर जानकारी दे दे     अगर वो खुद बीमार था या पिता को लकवा हुआ था तो वो मिलीटरी अस्पताल में इलाज करा सकता था लेकिन वो एक झोलाछाप डाक्टर के पास गया।

कोर्ट ने कहा कि ये मामला एेसा नहीं है कि वो कुछ दिन या तकनीकी या छोटे मोटे कारण से बाहर रहा। वो सामान्य छुट्टी से डेढ साल ज्यादा बाहर रहा और उसने अपने बारे में ना वरिष्ठ अधिकारी को बताया और ना ही नजदीकी स्टेशन को सूचित किया। कोर्ट ने कहा कि वो पहले ही अपनी सजा काट चुका है जो वापस नहीं हो सकती और सेवा से बर्खास्तगी के आदेश को भी वापस कर बहाल नहीं किया जा सकता।

Similar News