बिना प्रदूषण प्रमाणपत्र दिल्ली-एनसीआर में नहीं होगा वाहनों के बीमा का नवीनीकरण - वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का एक और वार

Update: 2017-08-10 16:22 GMT

बढते वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने एक और वार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि दिल्ली-एनसीआर में वाहनों का बीमा नवीनीकरण तभी होगा जब प्रदूषण प्रमाणपत्र होगा। कोर्ट ने बीमा कंपनियों को आदेश दिया कि बिना प्रदूषण नियंत्रण सर्टिफिकेट के वो इंश्योरेंस नवीनीकरण न करे और सुनिश्चित करें कि एेसे वाहन सडकों से दूर रहे।  कोर्ट ने केंद्र सरकार के सडक परिवहन और हाईवे मंत्रालय को निर्देश दिए हैं कि दिल्ली और एनसीआर में सभी पेट्रोल पंप व गैस स्टेशनों पर प्रदूषण जांच केंद्र हों और सरकार चार हफ्तों में सुनिश्चित करे कि सडकों पर बिना  प्रदूषण सर्टिफिकेट के वाहन ना चले।

जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने गुरुवार को अपने आदेश में कहा है कि दिल्ली-एनसीआर के वाहन मालिकों को बीमा नवीनीकरण के लिए वैध पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल(पीयूसी) सर्टिफिकेट यानी प्रदूषण प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा। इससे पहले अदालत द्वारा गठित पर्यावरण प्रदूषण(निवारक व नियंत्रण) अथॉरिटी(इपका) ने यह सुझाव दिया था।  हालांकि केंद्र सरकार का कहना था कि बीमा नवीनीकरण और बीमा पॉलिशी को एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता। मंत्रालय की दलील थी कि जहां बीमा नवीनीकरण साल में एक बार होता है वहीं पीयूसी जांच वर्ष में कुछ-कुछ महीनों के अंतराल पर होता है। वहीं सरकार की इस दलील करते हुए इपका की ओर से कहा गया कि बीमा नवीनीकरण और पीयूसी सर्टिफिकेट को एक साथ जोडऩे में किसी तरह की बाधा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वाहन मालिकों को बीमा नवीनीकरण कराने के वक्त पिछले दो या चार पीयूसी सर्टिफिकेट प्रस्तुत करना चाहिए। वैसे भी सडक पर जांच और चालान करने से शत फीसदी सुनिश्चित नहीं होता कि वाहनों के लिए प्रदूषण सर्टिफिकेट लिया गया है। वैसे भी मोटर व्हीकल एक्ट में बीमा होने पर जेल की सजा तक के कडे प्रावधान हैं। एेसे में बीमा कंपनियां RTO से इन सर्टिफिकेट की जांच करा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पीयूसी जांच केंद्रों पर नियमित रूप से निगरानी रखने के लिए कहा है। साथ ही अथॉरिटी को यह बताने केलिए कहा गया है कि पीयूसी जांच केंद्रों में ऐसे क्या यंत्र लगाने की जरूरत है जिससे कि प्रदूषण संबंधित नियमों के उल्लंघन पर पाबंदी लग सके।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट 1985 में एम सी मेहता द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई आदेश पारित कर चुकी है।

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