नेशनल हेल्थ पाॅलिसी 2017 व भ्रमात्मक अनुमान

Update: 2017-06-11 19:43 GMT

दाॅ नेशनल हेल्थ पाॅलिसी 2017(एनएचपी) से आशा की जा रही है कि वह भारत में छिन्न-भिन्न हो चुके देश के स्वास्थ्य सिस्टम को फिर से नया या ठीक कर देगी।

सरकार जीडीपी का 1.1 प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है,जो स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च का बस 28 प्रतिशत ही है। पब्लिक सेवाओं पर कम खर्च करने के कारण लोगों को मजबूरी में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता लेनी पड़ती हैै। जिसके चलते उनको आपातपूर्ण खर्चे करने पड़ते है।
स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले यह आपातपूर्ण खर्च 15 प्रतिशत (2004-05) से बढ़कर 18 प्रतिशत(2011-12) हो गए थे।

इस कारण से भारत में गरीबी रेखा के आस-पास रहने वाले लगभग 63 मिलियन लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च अपनी जेब से करना पड़ता है।
इसलिए इस पाॅलिसी का उद्देश्य है कि हेल्थ सिस्टम को सभी तरीके से एक आकार देने में सरकार की भूमिका को स्पष्ट,मजबूत व प्राथमिकताओं को निर्धारित करे। इसमें स्वास्थ्य संगठनों में निवेश,हेल्थ केयर सर्विस,बिमारियों से बचाव व अच्छे स्वास्थ्य को प्रमोट करना आदि शामिल है।

इस पाॅलिसी का सबसे अच्छा पहलू ये है कि आपातपूर्ण खर्च के मान्यतापूर्ण कागजात है और इस का टारगेट है कि जीडीपी का 2.5 प्रतिशत पब्लिक हेल्थ पर खर्च किया जाए। अगर इसकी तुलना इस समय पब्लिक हेल्थ पर होने वाले खर्च 1.1 प्रतिशत से की जाए तो यह बहुत अच्छा है।

इस समय देश पर संक्रामक बिमारियों के साथ-साथ असंक्रामक बिमारियों का भी भार है। वहीं देश की अधिक्तर जनसंख्या की खरीदने की क्षमता कम है। इस सीमित बजट से एक हौसला जगा है ताकि प्राईमरी हेल्थ सेंटर के माॅडल को फिर से बनाकर ’हेल्थ एंड वेलनेंस सेंटर’ में बदला जाए।

एनएचपी ने वहन ना किए जा सकने वाले दूसरे व तीसरे दर्जे के हेल्थ सिस्टम की पहचान की। हाउसहोल्ड इनकम का दस प्रतिशत से ज्यादा आपातपूर्ण भुगतान होता है। पाॅलिसी का उद्देश्य है कि इस तरह की स्थिति पर काबू पाने के लिए दूसरे व तीसरे दर्जे की केयर सर्विस के लाभकारी पैकेज पब्लिक सेक्टर से खरीदे जाए,न कि लाभकारी व प्राइवेट सेक्टर से।

हालांकि पब्लिक सेक्टर की सीमित क्षमता होने के कारण प्राइवेट सेक्टर की तीसरे दर्जे की सुविधाओं को इस तरह की परचेज स्कीम से लाभ होगा।

इस बात पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है कि बिना लाभ के तीसरे दर्जे की सेवाएं देने वाले निजी सेक्टर के अस्पताल काॅरपोरेट अस्पताल की तरह काम कर रहे है। पाॅलिसी में पब्लिक हेल्थ सेक्टर बिल्डिंग को काफी जगह मिली है। परंतु क्या यह सही दिशा होगी,यह एक वाद-विवाद का सवाल है।
यह भी निश्चित है कि अच्छी गुणवत्ता न होने व गायब डाक्टरों के कारण अधिक्तर खरीद कथित अलाभकारी व प्राइवेट सेक्टर से की जाती है। वहीं पैकेट सिस्टम कभी भी उचित मूल्य की हेल्थकेयर सुविधाएं देने के लिए सर्वोत्कृष्ट तरीका नहीं हो सकता है।

पैकेज सिस्टम एक सामान्यीकृत प्रकृति का है,इसलिए एक पेचीदा स्थिति को उत्पन्न करेगा,जिसमें या तो ज्यादा उपलब्ध होगा या फिर कम। पहली स्थिति में स्रोतों व पब्लिक फंड का दुरूपयोग होगा। यह फिर भी उचित होगा अगर इससे लोगों को अच्छी हेल्थ मिल जाए। परंतु दूसरी स्थिति बुरी होगी क्योंकि उसमें जरूरतमंद लोग सरकार द्वारा खरीदे इस पैकेज सिस्टम से बाहर होगे। जिन लोगों को हेल्थकेयर की जरूरत होगी,वह साधारण तौर पर इलाज के आधे रास्ते में होगे और बिना किसी सहायता के उनको छोड़ दिया जाएगा। वहीं हेल्थ केयर सर्विस के खरीदने से गैर-सरकारी हेल्थ केयर सेक्टर पर ज्यादा भरोसा हो जाएगा,जिससे फिर से आम आदमी के प्राइवेट सेक्टर की गिरफत में आने व उनका शोषण होने का डर बना रहेगा।

वहीं अगर पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम की तुलना नाॅन-पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम प्रोवाईडर से करते है तो एम्स जैसे संस्थानों को छोड़कर वह प्रतियोगिता में नहीं टिक पाते है। ऐसे में इसके समाधान के लिए अगर कोई हेल्थ पैकेज नहीं लेता है तो फिर उसकी पहंुच पब्लिक हेल्थ सेक्टर तक बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।

अगर दूसरे शब्दों में कहे कि अगर कूटनीतिक खरीद आपातपूर्ण भुगतान की स्थिति से निपटने की एक मुख्य नीति है तो इस स्थिति में यह भी साफ नहीं है कि एनएचपी कैसे अपने इस टारगेट को पूरा करेगा। क्या इसके लिए वर्तमान की पब्लिक हेल्थ सुविधाओं का प्रयोग वर्ष 2025 तक बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया जाएगा।

सिर्फ ढ़ांचागत सुविधाओं की कमी के कारण ही लोगों को पब्लिक हेल्थ केयर सुविधा नहीं मिल रही है,बल्कि हेल्थ केयर प्रोफेशनल का अकाल भी इसका मुख्य कारण है। पाॅलिसी में इस समस्या से निपटने के लिए नर्सिंग व पैरा-मेडिकल कोर्स में कुछ बदलाव किए गए है।
वहीं मध्यम स्तर के सर्विस प्रोवाईडर को ब्रिज कोर्स के जरिए क्वालिफाईड किया जा रहा है। इतना ही नहीं कई क्वासी मेडिकल शाॅर्ट कोर्स का आइडिया भी इस पाॅलिसी में शामिल किया गया है।

हालांकि इस तरह के अव्यवस्थित मानव संसाधन बिल्डिंग से लोगों को अच्छी हेल्थ सुविधाएं उपलब्ध कराने का उचित मैकेनिज्यम नहीं मिलेगा। इसमें खतरा बना रहेगा क्योंकि इस तरह के एक्सपेरीमेंट उन इलाकों में किए जाएंगे,जहां पर अभी आधुनिक मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। वहीं इन इलाकों में रहने वाले अधिक्तर लोग अनपढ़ व गरीब है। उनके पास सुविधाओं की गुणवत्ता को चेक करने की कम योग्यता होती है। ऐसे में आमतौर पर उनका शोषण होगा। इतना ही नहीं इस तरह के एक्सपेरीमेंट उस समय आ रहे है,जब हमारे यहां मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता व डाक्टरों की योग्यता पर गंभीर सवाल उठ रहे है।

पब्लिक हेल्थ केयर पर पूरा जोर देने के साथ-साथ एनएचपी ने स्वास्थ्य के अधिकार को समझने में गलती की है और कुछ स्पष्ट नहीं किया है। एनएचपी ने हेल्थ राईट बिल को स्वीकार करने के आइडिया को छोड़ दिया है।

पाॅलिसी को हेल्थ केयर की सही दिशा में जाने के मामलों को स्पोर्ट करते समय इस बात के लिए भी जागरूक रहना चाहिए कि उचित वित्तिय व ढ़ांचागत सुविधाएं उपलब्ध होना भी जरूरी है,तभी लोगों को उवित वातावरण मिलेगा और यह सुनिश्चित हो पाएगा कि गरीबों को भी फायदा मिल सके,न कि उनको किसी वैधता के पचड़े में पड़ना पड़े। यह पाॅलिसी एक उचित प्रोग्रेसिव अवधारणा पर आधारित है,जो इस बात का आश्वासन देती है कि भविष्य में हेल्थ केयर को सही दिशा में ले जाने के लिए समय पर फंड दिए जाएंगे। हालांकि यह आधी कष्टनिवारक साबित होगी क्योंकि इसमें ’हेल्थ-इन-आॅल’ की अवधारणा को माना गया,जबकि असली आइडिया ’हेल्थ फाॅर आॅल’ का है। राईट टू हेल्थ को समझने में गलती की गई है। भारत इंटरनेशनल कोवेनंट आॅन इक्नोमिक सोशल एंड कल्चरल राईटस(आईसीईएससीआर) में पार्टी है और इसलिए भारत के इंटरनेशल ओब्लिगेशन यानि जिम्मेदारी है कि वह हेल्थ राईट का आदर करे,उनकी सुरक्षा करें और उनको पूरा करें।

वहीं सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों के जरिए यह मान चुकी है कि राईट टू हेल्थ अनुच्छेद 21 के तहत मिले राईट टू लाइफ का ही एक हिस्सा है। इसलिए भारत में राईट टू हेल्थ न्यायसंगत है और भारत सरकार की इस अधिकार के संबंध में संवैधानिक जिम्मेदारी है। एनएचपी में राईट टू हेल्थ की कानूनी असलियत को पूरी तरह मान्यता दी गई है और उस श्रुटिपूर्ण वाक्य को बदल दिया है,जिसमें कहा गया था कि राईट टू हेल्थ को तब तक पूरा नहीं किया जा सकता है,जब तक डाक्टर-मरीज,बेड रेसो,नर्स-मरीज रेसो आदि उचित न हो और एकरूपता से पूरे देश में उपलब्ध न हो।

श्रीनाथ नामबोडिरी,इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फाॅर आईपीआर स्टडिज,कोचिन यूनिवर्सिटी आॅफ साइंस एंड टैक्नोलाॅजी से एलएलएम(आईपीआर) कर रहे है।

Similar News