धारा 498 ए में बरी होने से अभियोजन पक्ष आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एविडेंस एक्ट का लाभ नहीं ले सकताः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरोपी अगर दहेज प्रताड़ना के मामले में बरी हो जाए तो फिर अभियोजन पक्ष एविडेंस एक्ट के तहत अवधारणा के सिद्धांत का लाभ नहीं ले सकता। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एविडेंस एक्ट के तहत अवधारणा का लाभ अभियोजन पक्ष लेता है लेकिन प्रताड़ना मामले में अगर आरोपी बरी हो चुका हो तो एविडेंस एक्ट की धारा-113 ए का लाभ अभियोजन पक्ष नहीं उठा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने हीरा लाल बनाम स्टेट आॅफ राजस्थान के मामले में कहा है कि किसी पत्नी द्वारा आत्महत्या करने के मामले में अगर ससुराल पक्ष के रिश्तेदारों या पति को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए में बरी कर दिया जाता है तो फिर यह अभियोग पक्ष को एवीडेंस एक्ट की धारा 113ए के तहत दी गई धारणाओं का प्रयोग करके भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को साबित करने से रोकता है।
न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन व न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनागौड़र की खंडपीठ ने यह भी कहा कि प्रताड़ना कुछ हद तक क्रूरता से कम ही है। अगर तथ्यों के आधार पर प्रताड़ना पाई भी जाती है तो इस आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि आत्महत्या के लिए उकसाया गया था।
इस मामले में एक घरेलू महिला ने आत्महत्या कर ली थी,निचली अदालत ने इस मामले में पाया था कि धारा 498ए के तहत मामला नहीं बनता है,परंतु ससुराल पक्ष के लोगों को धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के मामले में दोषी करार देते हुए तीन-तीन साल की सजा दी थी। हाईकोर्ट ने भी इनकी अपील को खारिज कर दिया और पीड़िता द्वारा करने से पहले एसडीएम के समक्ष दिए गए बयान को माना,जिसमें पीड़िता ने कहा था कि उसके ससुराल के लोग अक्सर उससे झगड़ा करते थे और उसे घर छोड़ने के लिए कहते थे।
राज्य सरकार ने आईपीसी की धारा 498ए के तहत सभी को बरी किए जाने के आदेश को चुनौती नहीं दी,जबकि आरोपियों ने आईपीसी की धारा 306 के तहत अपनी सजा के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंडियन एवीडेंस एक्ट की धारा 113ए को किसी केस में लागू करने से पहले तीन तथ्यों या अंश का पाया जाना या उनके लिए संतुष्ट होना जरूरी होता है। 1-महिला ने आत्महत्या की हो। 2-यह आत्महत्या शादी होने के सात साल के अंदर की गई हो। 3- पति या उसके परिजन,जिन पर आरोप लगाए गए है,उन्होंने पीड़िता के प्रति क्रूरता की हो।
जब याचिकाकर्ताओं को क्रूरता के आरोप से मुक्त कर दिया गया,जो धारा 498ए के तहत केस साबित करने के लिए महत्वपूर्ण तथ्य है,तो इससे साफ जाहिर है कि धारा 113ए के तहत जरूरी तीसरा अंश इस मामले में गायब है। इसका अर्थ यह है कि इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी करार दिए गए सास व ससुर के खिलाफ यह साबित नहीं हो पाया कि उन्होंने पीड़िता के प्रति क्रूरता की थी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर यह मान लिया जाए कि धारा 113ए के तहत दी गई धाराणाएं इस केस में लागू होती है तब भी यह गलत ही साबित होगी क्योंकि इस मामले में कोई ऐसा लिंक या भावना नहीं मिली,जिससे यह साबित हो कि ससुराल पक्ष के लोगों ने पीड़िता की आत्महत्या करने में सहायता की थी।