भारत में पहली बारः उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गंगा व यमुना नदी को दिया जीवित ईकाई का दर्जा
उत्तराखंड हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने घोषित कर दिया है कि गंगा व यमुना,इनकी सहायक नदीयां, प्राकृतिक पानी की धाराएं जीवित ईकाई है और उनको एक कानूनी व्यक्ति का दर्जा दिया जाता है,जिसके तहत इनको एक जीवित व्यक्ति की तरह अधिकार,ड्यूटी व जिम्मेदारी होगी।
यह भारत में पहली बार हुआ है और विश्व में दूसरी बार,कि किसी नदी को जीवित ईकाई का दर्जा दिया गया है,जिसके अपने अधिकार व मूल्य होंगे और कानूनी दर्जा मिलेगा।
न्यूजीलैंड के नाॅर्थ आईलैंड में स्थित वांगनुई नदी को पहले विश्व में इस तरह का दर्जा मिल चुका है। बस फर्क इतना है कि न्यूजीलैंड में इस नदी को जीवित ईकाई का दर्जा वहां की संसद ने दिया था।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति अलोक सिंह की बेंच ने कहा कि समाज की मान्यता व विश्वास को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि गंगा व यमुना को जीवित ईकाई का दर्जा दिया जाए। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 48-ए व 51 ए (जी) के तहत गंगा व युमना को जीवित ईकाई की तरह कानूनी दर्जा दिया जाना चाहिए।
खंडपीठ ने कहा कि सभी हिंदुओं की गंगा व यमुना में गहरी आस्था है,जो इन दोनों नदियों से जुड़ी है। दोनों नदी भारत की आधी जनसंख्या,उनके स्वास्थ्य व जन-जीवन के बीच में स्थित है। दोनों नदी हमें शारीरिक व अध्यात्मिक निर्वाह उपलब्ध कराती है। यह जीवन व प्राकृतिक स्रोत को सहायता प्रदान करती है और पूरे समाज के स्वास्थ्य व अच्छे जीवन का आधार बन रही है। गंगा व यमुना नदी पहाड़ों से लेकर समुंद्र तक समाज को वायु लेने,जीने व बने रहने में मदद करती है।
नमामी गंगे के निदेशक,उत्तराखंड राज्य के चीफ सेक्रेटरी व राज्य के एडवोकेट जनरल को इन दोनों नदियों व उनकी सहायक नदियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए माता-पिता का दर्जा दिया है ताकि वह इनकी तरफ से मानवीय चेहरे के तौर पर पेश हो सकें।
न्यायालय ने कहा है कि यह अधिकारी इन दोनों नदियों के दर्जे को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है,वहीं दोनों नदियों के स्वास्थ्य व वैलविंग को प्रमोट भी करेंगे। बेंच ने एडवोकेट जनरल को यह भी निर्देश दिया है कि इन दोनों नदियों के हित की रक्षा करने के लिए वह सभी कानूनी प्रक्रियाओं में पेश हो।