'तारीख पे तारीख' संस्कृति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त, मजिस्ट्रेट को 1 सप्ताह में आदेश पारित करने का निर्देश दिया

Shahadat

31 Oct 2024 10:01 AM IST

  • तारीख पे तारीख संस्कृति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त, मजिस्ट्रेट को 1 सप्ताह में आदेश पारित करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मजिस्ट्रेट को बलिया कोर्ट में पिछले 7 साल से लंबित शिकायत मामले में धारा 203 या 204 सीआरपीसी के तहत उचित आदेश पारित करने का निर्देश दिया।

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने कहा कि न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने और 'तारीख पे तारीख' की संस्कृति पर अंकुश लगाने के लिए संबंधित मजिस्ट्रेट को ऐसा निर्देश दिया जा रहा है।

    अदालत के आदेश में कहा गया,

    “न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने और 'तारीख पे तारीख' की संस्कृति पर अंकुश लगाने के लिए इस न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग किया जाता है। इस आवेदन का निपटारा इस निर्देश के साथ किया जाता है कि अगली तारीख को विद्वान मजिस्ट्रेट आवेदक के वकील की दलीलें सुनेंगे। उसके बाद एक सप्ताह के भीतर उचित आदेश पारित करेंगे, यानी धारा 203 या 204 सीआरपीसी के तहत, जैसा भी मामला हो।”

    अदालत ने यह आदेश अंजनी कुमार यादव द्वारा धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर याचिका में पारित किया, जिसमें संबंधित मजिस्ट्रेट को मामले का फैसला करने का निर्देश देने की मांग की गई, जिसे उन्होंने 2017 में दायर किया और यह मामला सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/फास्ट ट्रैक कोर्ट, बलिया की अदालत में लंबित है। आवेदक (शिकायतकर्ता) ने 24 अप्रैल, 2017 को धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत आवेदन दायर किया। हालांकि, आज तक धारा 203 या 204 सीआरपीसी के तहत कोई आदेश पारित नहीं किया गया, जैसा भी मामला हो।

    पीठ को अवगत कराया गया कि शिकायत दर्ज होने के बाद से मामले को 50 से अधिक तारीखों पर सूचीबद्ध किया गया। हालांकि, अभी भी इस पर फैसला नहीं हुआ।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि शिकायतकर्ता का धारा 200 सीआरपीसी के तहत बयान शिकायत मामला दर्ज करने के चार साल से अधिक समय बाद 18 अक्टूबर, 2021 को दर्ज किया गया।

    अदालत ने आगे कहा कि गवाह 1 (पीडब्लू-1) का बयान 15 अक्टूबर, 2022 को दर्ज किया गया और गवाह 2 (पीडब्लू-2) का बयान एक साल बाद 9 जनवरी, 2024 को दर्ज किया गया।

    इसके बाद मामले को कई बार सूचीबद्ध किए जाने और आवेदक के वकील द्वारा स्थगन की मांग न किए जाने के बावजूद, शिकायत में कोई आदेश पारित नहीं किया गया।

    इसे 'न्याय का उपहास' करार देते हुए न्यायालय ने संबंधित मजिस्ट्रेट को उपरोक्त निर्देश जारी किया। साथ ही एकल न्यायाधीश ने संबंधित जिला जज को न्यायालय को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने और वर्तमान मामले में अत्यधिक देरी क्यों हुई, इस पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल- अंजनी कुमार यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

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