उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य को जेलों में मजदूरी करने वाले कैदियों को समान मजदूरी देने पर विचार करने का निर्देश दिया
Shahadat
19 Aug 2024 10:30 AM IST
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जनहित याचिका (PIL) के जवाब में राज्य को जेलों में मजदूरी करने वाले कैदियों को समान मजदूरी देने के मुद्दे पर विचार करने का निर्देश दिया।
कठोर परिस्थितियों में काम करने वाले कैदियों को मुआवजे की कमी को संबोधित करने के लिए दायर की गई जनहित याचिका में राज्य भर की कई जेलों में मजदूरी करने वाले कैदियों को मजदूरी का भुगतान न किए जाने का मामला सामने आया, जिसमें सितारगंज जेल भी शामिल है, जहां कैदी बिना पारिश्रमिक के 450 एकड़ के खेत में काम करते हैं।
चीफ जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने गुजरात राज्य और अन्य बनाम गुजरात हाईकोर्ट, (1998) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित मिसाल का हवाला दिया, जिसमें विशेष रूप से मजदूरी करने वाले कैदियों की स्थिति को संबोधित किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कठोर कारावास की सजा के तहत किए गए श्रम को संविधान के अनुच्छेद 23(1) के तहत निषिद्ध "भिक्षावृत्ति" या अन्य प्रकार के जबरन श्रम के बराबर नहीं माना जा सकता।
उसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,
"हालांकि, संविधान किसी राज्य को उचित कानून बनाकर अदालत के आदेश के तहत कठोर श्रम के अधीन कैदियों को उनके लाभकारी उद्देश्य या अन्यथा के लिए मजदूरी (चाहे किसी भी नाम से पुकारा जाए) देने से नहीं रोकता है।"
सुप्रीम कोर्ट के इस स्पष्ट मार्गदर्शन के बावजूद, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि राज्य ने अभी तक कैदियों को उनके श्रम के लिए मुआवज़ा सुनिश्चित करने के लिए कोई उपाय लागू नहीं किया।
अपने निर्देश में हाईकोर्ट ने राज्य से इस मुद्दे पर फिर से विचार करने और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को ध्यान में रखते हुए उचित विधायी या प्रशासनिक कार्रवाई करने का आह्वान किया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि कैदियों के साथ उचित व्यवहार सुनिश्चित करने की राज्य की जिम्मेदारी में उनके श्रम के लिए समान मजदूरी का प्रावधान शामिल होना चाहिए।
मामले की अगली सुनवाई 3 सितंबर, 2024 को निर्धारित की जाएगी।
केस टाइटल: रामचंद्र उर्फ राजू वर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य